गुरुवार, 2 जून 2016

कुम्हार.....कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू'

कुम्हार
़़़़़़़़़
कुम्हार
बहुत ही सरल
व सीधी जाति
पानी की तरह
कोमल
जैसा चाहो
मोड़ दो
उसे
स्वाभिमानी
सहृदयी
करूणा का सागर
जीता है
सादगी से
रहता है
नरमीयता से
कितना भोलापन
लचक होती है
उसके विचारों में

जब कोई करता है
गुस्ताखी
भयंकर प्रलय
मचाता है
पानी की तरह
तहस नहस
उजाड़ देता है
पूरा यौवन
बना देता है
नया इतिहास

शीतल होती है
यह जाति
पानी की तरह
साफ करता है
मन की गंदगी को
जीता भले झोपड़ी में
हवा की रूख
मोड़ देता है

नमन कुम्हारों का
सीखे कुम्हारों से
जीवन करे 
पानी जैसा शीतल
नरमी सीखे मन की
आओ करें
कुम्हारों की जयकार

सबसे पहले
कला जन्मी कुम्हारों के घर
मानव उत्पत्ति में 
खोज हुई बर्तन बनाने की कला
आदिमानव युग में
जन्म लिया सबसे पहले कुम्हार
इस धरा पर
सब जातियों की
जननी कुम्हार



जयचन्द प्रजापति 'कक्कू'
जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद
मों.07880438226




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