गुरुवार, 31 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की विरह कविता

देखो मुझे
.............

देखो मैं कैसे जी रहा हूँ
रात दिन बहे ये नैन
कहे किससे मन की व्यथा
जब से गई हो
न खाने पीने की सुधि
नींद नहीं आती है
करवटें कब तक लूँगा
पथराई ये आँखें
विवश व लाचारी की पीड़ा
दाबे खड़ा हूँ
रह रह अश्रु बहे
तन मन भीग गया है
बरसों से राह निहार रहा हूँ
कब आयेगी अलबेली रात
सजा हुआ यह उपवन
कब होगा,प्रिये!
दीन हीन में पड़ा हूँ
अब धैर्य नहीं है
सहन नहीं होता यह विरह वेदना
लगता है सावन आने तक
सूख कर कांटा हो जाऊँगा
तुझसे मिल न पाऊँगा

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता

कोई मुझे कवि बना दे
...........................

मैं भी कविता लिखता हूँ
कोई मुझे कवि बना दे
रात रात कवि की तरह
आह भरता हूँ
श्रृंगार रस देखता हूँ
नवयौवना में
विरह में जल जल कर
शब्दों की खोज करता हूँ
संवेदनाओं से सजा हूँ
नयन रस पीता हूँ
गाँव गली,पगडंडी देखूँ
सब पर कविता लिखता हूँ
बूढ़ी काकी पर लिखता हूँ
भौजी के नयनों का सुर लिखता हूँ
कविता,गीत,हास्य,गजल
मेरे बाँये हाथ का खेल है
चाहे जितनी कविता लिखवाओ
चाहे जिस पर लिखवाओ
चाहे मेरा शोषण ही कर लो
करो मेरी बेइज्जती
इच्छा भर के
पत्नी को गिरवी ऱख दूँगा
लेकिन कवि बना दो

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता

भागे शहर की ओर
........................

गाँव छोड़ छाड़ के
भागे शहर की ओर
नहीं आया रास गाँव की आबोहवा
खेत,खलिहान नहीं भाया
गाँव की पगडंडी
गाँव का कुनबा
गाँव को काँव काँव समझा
शहर की मेम साहिबा
शहर की चिकनी सूरत का
भया दिवाना
हॉफ चड्डी पहने लड़का लड़की
इश्क के चक्कर में
पड़ी नौ लाठी
हाथ टूटा,पैर टूटा
रहे न किसी काम के
तेरह माह जेल बिता के
जमानत कर गाँव भागा
मुँह चुरा कर
कई माह घर में बैठा
लोक लाज के भय से
अवसादग्रस्त हो गया हूँ

कवि जयचन्द प्रजापति की भोजपुरी हास्य कविता

ओकर कजरा
.................

हमई देख ऊ आवई लाग
नजर मिलावई लाग
रोज घरे आवई
सब के मिलावई लाग
ओकर कजरा
मन हरषावई लाग
घूँघट खोल के आवई लाग
बहुत नयन बा कजरारी
होठन की लाली से
कमर की लचकन से
भरी गरमी में
सावन नजर आवई लाग
दरद अइसन उठी
दिल कराहई लाग
अइसन नजर लगायेस
हफ्तन खटिया नाही छोड़ा
आँख,नाक सब बहई लाग
बड़े बड़े वैद्यउ आयेन
लगी होई ओझाई
कहेन तेरह दाना भूत बा
मम्मी के मन चकराईगअ
बाबू मूड़े पर हाथ रख लीहेन
पत्नी के होश उड़गअ
हमरऊ दरद न जाने कोई
नजर फुकावा
ठीक भये तेरह दिन में
ओकर कजरा मन फिर हरषावई लाग



लेखक जयचन्द प्रजापति की दलित चेतना विचार.

         आज के दौर में जो बदलाव की आँधी चल रही है इस आँधी में दलित चेतना
का भाव बदला है.वे समाज के साथ बढ़ने के साथ तरक्की के राश्ते खोलें है. उनकी 
मानसिकता में नई सोंच व उर्जा का भाव संचरित हो रहा है.वे खुद दबी मानसिकता 
से उभरना चाहता है और एक दलित दृष्टिकोण को बदल रहा है.यह एक चेतना आधुनिक
बदलाव का परिणाम है जो आगे अनवरत बढ.ने में सहायक सिध्द हो रही है.
        अब दलित में नई सोंच के साथ उनके कार्य प्रणाली व व्यवहार तथा रोजगार की दिशा
में परिवर्तन नजर आ रहा है.वे बदले हैं अपनी मानसिकता.अभी बदलाव की और जरूरत है
परन्तु बदलाव तभी संभव है जब हर एक सोंचेगा कि किसी के यहाँ गिरवी मजदूर होकर
काम नहीं करेगा.उसके घर की महिलायें किसी के यहाँ चूल्हा चौका या खेतों में काम करनें 
नहीं जायेंगी.लड़कियाँ गोबर बिनने नहीं जायेगीं बल्कि स्कूल जायेगी.
         इसके साथ ही लालच की भावना का भी परित्याग करना पड़ेगा कि हमारा भले नुकसान
हो लेकिन किसी का गुलाम नहीं बनना है.स्वतंत्र कार्य का चुनाव करना है तो शायद दलितों में
एक विकासवादी सोंच को नई रोशनी मिलेगी ओर इस बदलाव से आने वाली पीढ़ी को नया सुझाव
स्वमेव मिलेगा और जो सामन्तवादी सोंच है उसमें कुठाराघात होगा.यह कविता जीवन में बदलाव 
के संकेत दे रहा है.
           

बदलो जीवन पथ को
बढ़ो तीव्र गति से
देखो नई दिशायें
राह पकड़ो बढ़ने की
दलित नहीं रहना है
बहू बेटियाँ
घर पर रहेंगीं
नहीं करेगी गुलामी
उन सामन्तवादी सोंच के यहाँ
रखो निज मान
बनों नई दिशा

बुधवार, 30 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति का जीवन परिचय

कविता के लेखन में उल्लेखनीय योगदान देने वाले कवि जयचन्द प्रजापति का जन्म 
इलाहाबाद जनपद के  हंडिया तहसील के एक छोटे से गाँव जैतापुर में एक गरीब
परिवार में श्री मोतीलाल प्रजापति के घर पर 15 जुलाई 1984 को हुआ था. पिताजी की
मृत्यु  बचपन में हो गई जब ये लगभग पाँच साल के थे. पिता के मृत्यु बाद सारा घर का
भार माता शान्ती देवी के ऊपर आ गया.सामाजिक विद्रुपताओं से लड़ते हुये इनकी
माँ ने स्नातक तक पढ़ाया.इनकी इकलौती बहन  कुसुम का भी पूरा पूरा सहयोग रहा.
बाद में पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा किया.गाँव में एक प्रतिष्ठित विद्यालय NICमें अध्यापन 
कार्य करते हुये जीवन यापन कर रहें हैं. इनकी शादी मीरा प्रजापति के साथ हुई .इनकी
इकलौती लड़की नैंसी है जिसकी उम्र लगभग तीन साल है.
       बचपन इनका कठिनाइयों से बीता .गरीबी को झेला इनकी कविताओं में गरीबों ,
मजदूरों ,शोषितों के प्रति अपनी कविता में एक नया स्वर दे रहें हैं.कविताओं में सच्ची सच्चाई
 की भावना झलकती है. कहीं प्रेम का आलिंगन है तो कहीं विरह की वेदना हैं तो कहीं 
समाज में स्थित विद्रुपताओं के खिलाफ आवाज दे रहें हैं.इनकी कविताओं में यथार्थ हैं .
सच्चा जीवन का भाव आसानी से झलकता है.सरलता,सौम्मयता,गांभीर्य भावनाओं से
ओत प्रोत कविताओं में नया रूप दिये हैं.प्रकृति के सौंन्दर्य की विशालता को समावेश
 किया है. इनकी कविताओं में हास्य व ब्यंग का स्वर फूटा है.मानवीय संवेदनाओं को
उकेरा है.
          सरल व सादगी भरा जीवन जीने वाले कवि की भावना भी सरल व सीधी है.
ईमानदारी ही इनका प्रमुख गुण है,उदार हृदय तो इनकी भावनाओं व नसोँ में दौड़ता 
रहता है इसी कारण समाज में जो विषमता है वो समानमूलक समाज की स्थापना में
विश्वास करतें है.गरीबों के प्रति जो लोंगों की सोंच है वे बदलाव चाहते हैं.वे कहतें हैं
बिना मानवीय मूल्य व  मानवीय समानता की भावना  के एक अच्छे समाज की
कल्पना नहीं की जा सकती है.
         इनकी कविताओं में स्त्री विमर्श व दलित चेतना का भाव भी प्रस्फुटित हुआ है.
दलितों के उत्थान के लिये इनकी कवितायें संघर्ष कर रहीं हैं.यह इनकी दलित सोंच 
भी एक नई दिशा दलितों को दे रहा है.स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार से इनका मन त्रस्त
है.इनकी कवितायें स्त्री स्वर को एक नई व सकारात्मक दिशा प्रदान कर रही हैं.इनकी
कविताओं में बचपन में  बच्चों के साथ हो रहे अनेक अत्याचारों से उनके जीवन में
होने वाले परिवर्तन को भी स्वीकार कर कविताओं के माध्यम से सजीवता भरनें की 
पूरी कोशिश कर रहें हैं.
       आजकल अधिकतर समय कविता के लेखन में दे रहें हैं.कई पत्रिकाओं मे इनकी
कवितायें छप रहीं हैं.इन्होनें एक ब्लॉग की शुरुआत की है. इनके ब्लॉग का नाम है.
kavitapraja.blogspot.com .जहाँ इनकी कविता को पढ़ा जा सकता है.


कवि जयचन्द प्रजापति की कविता

मेरी कविता
................

मेरी कविता भरी है फूलों से
नव नभ की डाली से
होठों की लाली से
गेहूँ की बाली से
सावन की हरियाली से
रात पहर जागे
दिन पहर ठिठोली करे
मदहोश हवा के झोंकों से
श्रृंगार से भीगी पलकें
नीली आँखों की गति जानें
हर शब्द भरा है रंगों से
शहनाई की हर तर्ज है
यही जीवन का फर्ज है
प्रेम रस से भीगा है
नयनों के द्वार पर खड़ा है
रात कली की तरह खिली है
बाँहों में भरा है आलिंगन
दूर तक जाती इसकी सौगन्ध


जयचन्द प्रजापति के प्रेमगीत

मेरी प्रियतमा
..................

मेरी प्रियतमा
तुम कब आओगी
देखो,बहते नैनों से नीर
विरह वेदना में जलता हृदय
सूली पर टँगा है
अपलक ताक रहा है
तेरी आने की डगर
पीड़ा का थाह नही है
सुबह तक मर जाऊँगा
आकर देख लो मुखमण्डल को
बहुत पछतायेगी
बात बिगड़ जायेगी
नौबत रोने की आयेगी
दर दर ठोकर खाओगी
नहीं मिलेगा ऐसा सजना
नित नये अश्रुप्रवाह में
सुबह शाम बह जाओगी
अलबेली रात है
सुहानी बात है
श्रृंगार रस से सजा ये मौसम है
चली आओ पगडंडी से होकर

मंगलवार, 29 मार्च 2016

जयचन्द प्रजापति के गजल

मेरे जनाजे पर...

मेरे जनाजे पे  खुश होकर चले आना सनम
बेवफा ही कहकर मुझे सहारा दे जाना सनम.

मै तो चला यूँ ही, मुश्कराते रहना प्यारे सनम
खिलखिलाना नजरों को खुश रखना सनम.

मेरा बचा ही क्या है इस जनाजें के सिवा सनम
किसी और के घर जाके मौज मनाना सनम.

तुम्हारे आने से कीमत बढ़ जायेगी प्यारे सनम
मेरे दिल पर लगा जख्म भर जायेगा न्यारे सनम.

गैर ही समझना मेरे मौन नजरों की शराफत को
थोड़ा सा निगाहें मिला लेना मेरे जिगरी सनम.





जयचन्द प्रजापति की शायरी

.....
वे मेरे घर सज सँवर के आ रहें हैं
समझो मेरा घर बर्बाद करने आ रहें हैं
.....
मै सरे आम बिकने जा रहा हूँ
सारी चिन्ता से मुक्ति पाना चाह रहा हूँ
.....
अब मैं शहर जाने के लायक नहीं रहा
फूटी कौड़ी जेब में अब नही रहा
.....
बह जब से सोहना के घर जाने लगी है
मुझे अब वह बेवफा कहने लगी है
.....
रोज रोज इतना सितम क्यों कर रही हो
मेरी जवानी का तार तार क्यों कर रही हो

होली

होली पर्व हम लोग खुशी व उल्लास से मनाते हैं
एक दूसरे से गले मिलते हैं और जमकर गुझिया खाते हैं
वैसे यह पर्व  भारत का प्रमुख पर्व माना जाता
है.रंगों का यह पर्व खूब मजा देने वाला पर्व है
किसी भी मजहब का व्यक्ति यह पर्व मना सकता है
कोई रोक टोक नहीं है.
यह पर्व विशालता को समेटो हुये है.भारतीयता का पूरा
पुट दे खा जा सकता है.नये रंगों से सजा यह पर्व
खुशियों के गीत से सजा है
     
                                                    जयचन्द प्रजापति.

जयचन्द प्रजापति की हास्य व्यंग कविता

मेरे निठल्लेपन से

मेरे निठल्लेपन से
गाँव के लोग परेशान हैं
उनकी हालत पतली है
दिनभर घूमता है
मौज काट रहा है दिनभर
गाँव गली में चर्चा भी है
नेतागीरी उपर से करता है
टिनोपाल दिये
रंग जमाता है
खा खाकर मोटा हुआ है
हर हफ्ते
तोड़ रहा है खटिया
बीबी बच्चे ताने मार रहे हैं
फिर भी अकड़ रहा है


सोमवार, 28 मार्च 2016

जयचन्द प्रजापति के नवगीत

चिड़ियों के राग से
......................

यह सुबह कहे
जीवन का शुभ पल
बीत रहा है

भीगे भीगे मतवाले नयन
उदास ये स्वर लहरियाँ
जीवन की कहे कहानी
पल पल ये आँखें
मदहोश है तरंगें
खुशियाँ लहरें

हर साँसों में
हर बाहों में
गीत सुना रहा है

रस से भरी है
निगाहों में शोख है
चंचल ये चितवन है
राहों में खडी है
बुला रही है इशारे करके
ओसों की बूँदों में

जवानी के राहों में
हर धड़कन में
पुलकित हो रही है

अभी छा जाने का मौसम है
रह रह के बीते पलों में
गुण गा रही है
मतवाली किरणें
भोर हुआ है मुसाफिर
नीदों को तोड़ दे

आयी है मतवाली सुबह
चिड़ियों के राग से
हरियाली आ रही है


     जयचन्द प्रजापति

शनिवार, 26 मार्च 2016

जयचन्द प्रजापति की हाइकु कवितायें

(1)

सज के आना
रात के हम दोश्त
बन करके

(2)

मोहब्बत में
जान देने को राजी
कब से हुई

 (3)

यह चाँदनी
हमसफर बनी
मुश्कराकर

(4)

कब से आयी
खड़ी हो तुम वहाँ
कौन है दोश्त

(5)

वह सोंच के
कुछ देर तक से
इंतजार की



शुक्रवार, 25 मार्च 2016

लेखक जयचन्द प्रजापति का लेख

दया  


दया जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है जिसके जीवन
में दया का भाव नहीं आया वह सच्चा इंसान नहीं माना
जाता है.दया को खरीदा नही जा सकता है.दया असहायों
के लिये उपजा मन का भाव है.जब सच्चे हृदय को पुलकाओगे
तो यह सहज गुण स्वमेव आ जाता है.
दयालु व्यक्ति गुणवान भी होता है.वह सहीं मार्ग पर चलता है
अच्छे कार्यों की तलाश में रहता है.महान व दयावान हृदय
बनाने में वह लगा रहता है.अनवरत दया का घूँट पीता रहता है.
मानवीय गुण उदारता का हिस्सा होता है.
      दया के लिये सहज हृदय की आवश्यकता होती है जहाँ सहज
हृदय का आगमन होता है.करूणा उसके आगे पीछे चक्कर लगाना
शुरू कर देती है.दया का रसा स्वादन लेना चाहिये जो ऐसा करते है.
वह दया का पैगम्बर होता है

होली

सोमवार, 21 मार्च 2016

जयजव्द प्रजापति की रचना

वे लोग

वे लोग
जो देश की बुराई करते हैं
गुमराह करते हैं
साधारण जनों की
अपमानित करना
उनकी आदत है
गंदी हुकूमत की
बू आती है
काँटें बोना
उनकी
शोहरत की मिशाल है
कुछ लोग
जानबूझ कर
नेकी का चोला पहनतें हैं
उनकी आँखों में
गंदी नियत की
फिल्म चलती है
झूठीं शान के चलते
गरीबों की
कब्र खोदतें है.



          जयचन्द प्रजापति




रविवार, 20 मार्च 2016

जयचन्द प्रजापति का जीवन

सच्चा जीवन

दोश्तों,मैं सच्चे जीवन को आत्मसात करता हूँ
मेरी भावनायें सरल व सादगी की प्रतिबिम्ब है,
गलत कार्यों में मेरी कोई रूचि नहीं है.सदैव गरीबों,
पीड़ितों,दुःखियारों के प्रति मेरी संवेदना रहती है.
सादा मेरा भोजन है,सादे कपड़ें में भरोसा करता हूँ
मैं कभी कभी सोंचता हूँ कि यह समाज कब समान
होगा.शायद समान होना मुश्किल है.

समान भावनायें जब तक नहीं आयेगी तब तक
कल्पना नहीं की जा सकती है कि समाज में समानता
आयेगी परन्तु मेरी कोशिश चालू है और समानता लानें
के लिये मैं तत्पर भी हूँ.लालच घूसखोरी जहाँ रहेगी
वहाँ समानता की भावना का पनपना मुश्किल है.

मैं उदार हृदय वालों की प्रशंसा करता हूँ और ऐसे
उदार हृदय से अनुरोध करूँगा कि वे समानता को
लानें में अपना जीवन समर्पित करें.करूणा को जगाना
मेरा कर्तव्य बनता है.करूण हृदय कभी धोखा नहीं
 खाता है.वह आगे बढ़ता है.यह भाव लेकर मैं अनवरत 
अपनें को कर्मशील बना रखा हूँ.

सच में अगर हर व्यक्ति यह सोंच ले तो समाज की तरक्की
स्वमेव  हो जायेगी और विकास व समानता का प्रतिबिम्ब
नजर आनें लगेगा और समाज में उदारता का अागमन
हो जायेगा .मेरी सोंच के मुताबिक एक सच्चा जीवन
की कल्पना साकार हो जायेगा.

                                       जयचन्द प्रजापति

जयचन्द प्रजापति की कवितायें व रचनायें

वह बालक

वह बालक
इसलिये नहीं पढ़ सका
वह अनाथ था
समाज के ठेकेदारों द्वारा
प्रताड़ित किया गया
अँधेरें में रखा गया
भरपेट भोजन न मिला
कुपोषित यह बालक
ईंट भट्टे पर काम करता है.


            जयचन्द प्रजापति

मेरा घर

मेरा घर
कितना सुन्दर है
जी करता है
बस पड़ा रहूँ घर पर
रात दिन
दिल में रहता है
मेरा घर



               जयचन्द प्रजापति

मेरा भारत

मेरा भारत सपनों का भारत विश्व विजेता बार बार प्रणाम जयचन्द प्रजापति

मन

मन कितना चंचल होता है रात पहर में थोड़ा शान्त चित्त रहता है जयचन्द प्रजापति

मेरा प्रेम

मेरा प्रेम कितना मधुर है सरल,सादगी से भरा है हर पल गाये मधुर गीत कभी न टूटे जीवन वेला में रात में खूबसूरत बनें मेरा प्रेम जयचन्द प्रजापति

कवि कैसे बनें

कवि बनने की भावना अगर आप में आ रहा है तो कवि आसानी से बना जा सकता है.इसके लिये कोमल हृदय का वास होना चाहिये.कोमल हृदय के अभाव में कविता का गुण आना मुश्किल है.सुन्दर विचारों की भी कल्पना होनी चाहिये.कल्पनाओं का भी अभाव नहीं होना चाहिये.इसके साथ ही उदार भावनायें सदैव तत्पर रहे तो ऐसी दशा में कवि बनने के रास्ते कुछ आसान हो जाते हैं.समाज में गलत सिध्दांतों का घोर विरोधी वाला रखना पड़ेगा. साधारण जनों से प्रिय रहना होगा.नारी स्नेह में कोई दुर्भावना नहीं होनीं चाहिये बाल स्नेह कूट कूट कर भरी होनी चाहिये फिर देखिये कविता अंकुर निकलना प्रारम्भ हो जायेगा. स्वार्थ तत्वों के खिलाफ आवाज निकालना एक सुन्दर हृदय को बनानें में सहायक हो सकता है.स्वार्थरहित प्रेम एक प्रेरक का काम करता है.विश्वास की धारा बहाना कवि बनने में सोनें में सुहागा कर सकता है.मधुर मुश्कान तो रस मलाई है.सादा जीवन तो गले पड़ी रहना चाहिये.दया से ओत प्रोत होकर काव्य जगत में आसानी से कवि का मुकाम पाया जा सकता है.भूखें भी रहना चाहिये.दीन हीन होकर सहज प्रवृत्ति को प्राप्त की जा सकती है. रहन सहन सादा कर लीजिये.धोखेवाजी का आलिंगन मात्र से बचें.यह अवगुण का कारक साबित हो सकता है.धन सम्पदा का मोह नही होना चाहिये.मोहपाश में रहनें वाला व्यक्ति कवि के सपनें को त्याग करना पड़ेगां.ऐसी स्थिति में कवि के लिये संघर्ष करना तारे तोड़ने के बराबर है.मैं कवि बनने का आसान और सहज नुस्खा बता रहा हूँ. तुलसीदास ऐसे कवि नहीं बन गये थे.त्याग गुण अनिवार्य गुण होना चाहिये.उन्हें तो कवि के लिये धर्मपत्नी का परित्याग करना पड़ा.यह भी कवि का एक महान गुण रखना पड़ेगा. जब विरह की वेदना बलवती होगी तो सहज कविता का रंग गाढ़ा हो जाता है तब वह कवि के लिये एक परिपक्व कविता उबाल मारनें लगती है.ऐसी स्थिति में प्रत्येक रस की उत्तपत्ति बड़ी तेजी से होनें लगती है. कवि की भावना बनाना बहुत आसान भी है, कठिन भी.लगना पड़ेगा.अगर आप वास्तव में महान कवि की कल्पना सँजोयें है तो ऊपर के सिध्दांतों का अनुशरण करना ही पड़ेगा. जयचन्द प्रजापति मो.07880438226 ई मेल.Jaychand4455@gmail.com

शनिवार, 19 मार्च 2016

साहस

साहसी आदमी महान होता है .सदैव अपना काम करता है.वह कमजोर
प्रवृत्ति का नहीं होता है. जब वह अच्छा सोंचता है तो वह सदैव अच्छा
ही करेगा.वह करूणा का स्वामी होता है और अच्छा दिल सदैव रखता है.
वह हताशा में नहीं होता है. वह अपने कार्यों को करते रहने में भरोसा
करता हैऔर अच्छी सोंच के साथ वह आगे बढ़ता है.
उसके मन में सदैव लगन होता है .उसका इरादा महान आदर्श के
साथ आगे की ओर चलायमान होता है.अतः साहस के वगैर एक व्यक्ति
महान बनने की प्रेरणा को नहीं प्राप्त कर पाता है .


                जयचन्द प्रजापति
       

बिटिया

बिटिया 
कितनी प्यारी होती है
सारा काम करे
माँ बाप का नाम करे
दो दो घर 
उजियारा फैलाये
घर गाँव बनाये
बिटिया प्यारी


  जयचन्द प्रजापति
 मों7880438226

होली

होली आयी रे
रंग लाई रे
रंगों से सजा यह पर्व
गाये गीत
पिचकारी डाले रंग
लाल गुलाल
उड़े 
मतवाला मन
झूम झूम नाचे


   जयचन्द प्रजापति

यह सुबह

यह सुबह
कितनी मधुर है
चिड़िया गायें
मधु दिन आये
छाये हरियाली
जीवन की बेला में
मधुर पंख लगाये
नव गीत गुनगुनाये
नई ताजगी देती सुबह


          जयचन्द प्रजापति