गुरुवार, 31 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता

कोई मुझे कवि बना दे
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मैं भी कविता लिखता हूँ
कोई मुझे कवि बना दे
रात रात कवि की तरह
आह भरता हूँ
श्रृंगार रस देखता हूँ
नवयौवना में
विरह में जल जल कर
शब्दों की खोज करता हूँ
संवेदनाओं से सजा हूँ
नयन रस पीता हूँ
गाँव गली,पगडंडी देखूँ
सब पर कविता लिखता हूँ
बूढ़ी काकी पर लिखता हूँ
भौजी के नयनों का सुर लिखता हूँ
कविता,गीत,हास्य,गजल
मेरे बाँये हाथ का खेल है
चाहे जितनी कविता लिखवाओ
चाहे जिस पर लिखवाओ
चाहे मेरा शोषण ही कर लो
करो मेरी बेइज्जती
इच्छा भर के
पत्नी को गिरवी ऱख दूँगा
लेकिन कवि बना दो

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