बुधवार, 30 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की कविता

मेरी कविता
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मेरी कविता भरी है फूलों से
नव नभ की डाली से
होठों की लाली से
गेहूँ की बाली से
सावन की हरियाली से
रात पहर जागे
दिन पहर ठिठोली करे
मदहोश हवा के झोंकों से
श्रृंगार से भीगी पलकें
नीली आँखों की गति जानें
हर शब्द भरा है रंगों से
शहनाई की हर तर्ज है
यही जीवन का फर्ज है
प्रेम रस से भीगा है
नयनों के द्वार पर खड़ा है
रात कली की तरह खिली है
बाँहों में भरा है आलिंगन
दूर तक जाती इसकी सौगन्ध


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