मंगलवार, 29 मार्च 2016

जयचन्द प्रजापति की शायरी

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वे मेरे घर सज सँवर के आ रहें हैं
समझो मेरा घर बर्बाद करने आ रहें हैं
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मै सरे आम बिकने जा रहा हूँ
सारी चिन्ता से मुक्ति पाना चाह रहा हूँ
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अब मैं शहर जाने के लायक नहीं रहा
फूटी कौड़ी जेब में अब नही रहा
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बह जब से सोहना के घर जाने लगी है
मुझे अब वह बेवफा कहने लगी है
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रोज रोज इतना सितम क्यों कर रही हो
मेरी जवानी का तार तार क्यों कर रही हो

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