गुरुवार, 31 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की भोजपुरी हास्य कविता

ओकर कजरा
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हमई देख ऊ आवई लाग
नजर मिलावई लाग
रोज घरे आवई
सब के मिलावई लाग
ओकर कजरा
मन हरषावई लाग
घूँघट खोल के आवई लाग
बहुत नयन बा कजरारी
होठन की लाली से
कमर की लचकन से
भरी गरमी में
सावन नजर आवई लाग
दरद अइसन उठी
दिल कराहई लाग
अइसन नजर लगायेस
हफ्तन खटिया नाही छोड़ा
आँख,नाक सब बहई लाग
बड़े बड़े वैद्यउ आयेन
लगी होई ओझाई
कहेन तेरह दाना भूत बा
मम्मी के मन चकराईगअ
बाबू मूड़े पर हाथ रख लीहेन
पत्नी के होश उड़गअ
हमरऊ दरद न जाने कोई
नजर फुकावा
ठीक भये तेरह दिन में
ओकर कजरा मन फिर हरषावई लाग



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