गुरुवार, 31 मार्च 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता

भागे शहर की ओर
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गाँव छोड़ छाड़ के
भागे शहर की ओर
नहीं आया रास गाँव की आबोहवा
खेत,खलिहान नहीं भाया
गाँव की पगडंडी
गाँव का कुनबा
गाँव को काँव काँव समझा
शहर की मेम साहिबा
शहर की चिकनी सूरत का
भया दिवाना
हॉफ चड्डी पहने लड़का लड़की
इश्क के चक्कर में
पड़ी नौ लाठी
हाथ टूटा,पैर टूटा
रहे न किसी काम के
तेरह माह जेल बिता के
जमानत कर गाँव भागा
मुँह चुरा कर
कई माह घर में बैठा
लोक लाज के भय से
अवसादग्रस्त हो गया हूँ

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