शनिवार, 30 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति 'कक्कू' की कविता

मेरा प्यार
.............

मेरा प्यार
दूर तक
सोंचता है
तुम चाहे जहाँ हो
प्यार मेरा रहेगा
सहजता लिये
भरी आशा के साथ
मैं खड़ा हूँ
तेरे रगों में
मेरी विवशता देखो
समझो
आखिर
मेरे प्यार में
तुम हो
शायद मेरे मरने पर
तुम ही होगी
सिंहासन
मेरे प्यार की
मैं तो बस हवा हूँ
तू ही मेरी आंगन हो
मेरी छवि हो

जयचन्द प्रजापति कक्कू
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी की कविता

मेरा सपना
.............
मेरे भी सपनें हैं
जीता हूँ
भले अभावों में
रहता हूँ
मैं भी सपनों में
दिन भर करता हूँ
पूरा सपना
बहुत देर तक
लगा रहता हूँ
कुछ करना चाहता हूँ
अपने लिये
लेकिन दुर्भाग्य
नहीं पीछा छोड़ता है
फिर भी
हिम्मत के साथ
कई तरह के
कार्यों से
जीता हूँ
यह मेरा जीवन
हमेशा विवादों में होता है
सहजता समेंटे हुये
पड़ा हूँ
कवि बनने का
सपना बुन रहा हूँ


जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो7880438226

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

प्रसिध्द कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी' की कवितायें......

सुनों जी
...........

सुनों जी
कहाँ हो
जल्दी आओ
मेरे पास
बात करनी है
कुछ
भूली भूली सी
रहती हो
व्यस्त रहती हो
देर तक
बहुत कुछ
कहना है
सारी बातें बताना है
लेकिन फँसी हो
नित नये कामों में
कभी फुर्सत में
हमसे बात
करती क्यों नहीं
कामों में रहती हो
बच्चों में
संडे को भी मगन रहती हो



अजी
......

प्रेम करती क्यों नहीं
बहकी बहकी
रहती हो
खोई हो क्या
किसी के याद में
भूल कर
अजी
चली आओ
सुरमयी शाम में
कुछ
मुश्कराती नहीं
थोड़ा चूमने दो
होंठों को
बस एक बार


जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

मोदी जी.......जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी'

मोदी जी
..............
देश के बने प्रहरी
मोदी जी
सहज उदगार करे
भारत माँ को सींचा है
तन मन से
नई कीर्ति फैलाई
सारे जग में
बही नव चेतना का स्वर
युग बदला
सुर बदला
नई झंकार उठी
हर युवा की राह बदली
बही शीतल हवा
गरजा स्वर नाद
हिमालय सी छाती
ताने खड़ा विश्व में
धन्य हुई भारत माँ
जग उजियारा भया
शान बढ़ी
लाज बढ़ी
नव सुर गान हुआ

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226


गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

अमिताभ बच्चन जी....कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

अमिताभ बच्चन जी
.........................
संगीत की लय लिये
इलाहाबाद का
यह सिने स्टार
कहती अभिनय की कथा
जीवन्त करते
नये नये किरदार
सादगी लिये
करोड़ो दिलों के बादशाह
जोड़ती यादें
भारत की बनाती
नव तस्वीर
बसे हैं बच्चन जी
हर भारतीय के रगों में
शत शत नमन

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

हरिवंशराय 'बच्चन' जी.....कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'

हरिवंशराय 'बच्चन' जी
.............................
लिख कर
इतिहास बनाया
बनी मिशाल मधुशाला
हिन्दी हुई धन्य
निकली रस की धारा
प्रेम की कहानी
बनी रचना
जन जन की
लिखी मन की व्यथा
जग जाना
व्यक्तित्व आपका
मधु दिन
जब छाया
इलाहाबाद अमर हुआ
हृदय की बात
फूटी मन में
शत शत नमन
प्रिय कवि
रखा मान हिन्दी का
मन भया हर्षित
धन्य बनी कविता
जीवन की पूरी
हुई अभिलाषा


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

महादेवी वर्मा.......कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी'

महादेवी वर्मा


हिन्दी जागी
महादेवी के कर कमलों से
निकला गीत
नई प्रातः की
हुई धन्य हिन्दी
बनी कविता की जननी
लिखी मन की पीड़ा
दर्द सही
जीवन की
कही कहानी भारत की
कितना निर्मल मन
सेवा साधना से
साहित्य हुआ
धन्य
गा रहा है
गीत अमर महादेवी की
रचना भई स्वर्ण
कितनी सौम्य
कितना पवित हृदय
जीवन त्याग दिया
अमर किया साहित्य


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़.07880438226


इलाहाबाद का कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी'

इलाहाबाद का कवि

जाग रहा है
यह कवि
रात दिन
लिखता है
जीवन की गाथा
बहती पीड़ा रगों में
धूप सह रहा है
देख रहा नंगा भारत
गा रहा गीत
लघु रूप लिये
मन मन्दिर में
बसा है गरीबों की जयकार
देख रहा आतंक मन का
सहज चेतना लिये
जमा है इलाहाबाद में
लिख रहा है कविता
बार बार
मन खोजे
नव विहान
नई बेला में
बही नई जवानी
देखे मधुर तान संगम का

............................

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी' की कविता.... गरीब

गरीब
.......

गरीब को
लोग समझते हैं
अविश्वासी
दुत्कारते हैं लोग
बेबस करते हैं
यातना देने के लिये
षडयन्त्र रचते हैं
काम लेते हैं
बदल जाते हैं
वक्त के आने पर
लेकिन वह
जीता है दीन ईमान पर
सच्चाई को
दफन नहीं करता है
लड़ता है
अस्तित्व बचानें के लिये
मर जाता है
शान से
उठती है डोली
शान से
यही उसका जीवन

जयचन्द प्रजापति कक्कू जी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मोे.07880438226

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी'......मेरी पत्नी

मेरी पत्नी

मेरी पत्नी झूठी
कहानी गढ़ लेती है
वह पाठ कर सकती है
किसी रंगमंच पर
बहुत अच्छा अभिनय
सच्चा हृदय रो देगा
कितना महान
सादगी का प्रतिबिम्ब
करूणा का
बनावटी स्वरूप
हिला देगी
अंदर की ताकत को
पर
करीब से समझना
सब के लिये नहीं है
उसके अंर्तमन को
मै स्वाद लेता है
कह नहीं सकता हूँ कुछ
कहता हूँ
डंडे बरसते है
उसकी महिमा को
ईश्वर को शोध करना पड़ेगा
रहस्य क्या है


जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226




रविवार, 24 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी' की कविता....कवि

कवि
......
कवि होता है
चंचल हृदय की तरह
भावों में होता है
जन जन को जाने
देखे पीड़ा मानव मन का
कितना सहज
लड़ता है
तमाम कोशिशों से
हासिल करता है
महान सौन्दर्य
कवि हारता नहीं
यातना सह लेता है
खड़ा होता है बीच बाजार में
बनके असहायों का संबल
सच्चा जीवन के लिये
समर्पित अनवरत खोजता है
गहराइयाँ
तमाम रहस्यों को खोलता है
वह महान है कवि


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया ,इलाहाबाद
मो.07880438226

जन जन के युवा कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

हिन्दी के विकास में अहम योगदान देने वाले सतत
विकास में लगे आदरणीय जयचन्द प्रजापति की
कविता जन जन की बात करती है.करूणा का स्वर
उभरता है.इनकी कविता आमजन मानस के दुःख
दर्दों को समेटे रहती है.जीवन को करीब से देखने वाले
कवि का हृदय कोमल भावों से भरा है.यही भाव उनकी
कविता को नये भाव को समेटे हुये है.ऐसा कवि जो जमीन
से जुड़ा कवि होता है वह समाज की सच्चाई को बेपर्दा करता
है.वह अपने कार्य से पीछे नहीं हटता है.

तमाम विघ्न बाधाओं को पार करते हुये कवि बहुत ही सरल व
सहज भाव से कविता के विकास में योगदान कर रहें हैं जिसको
नकारा नहीं जा सकता है.कर्मठता अाप के जीवन का अंग है
चहूँ दिशाओं में आप की कीर्ति बढ़ रही है.

संघर्ष जीवन का नाम है.जहाँ संघर्ष है वहाँ से अगर कविता
का उद्भव होता है तो कविता एक मिशाल बनती है.चिर परिचित
भाव देने वाला कवि पूरे भारत में प्रिय हो रहा है.यह इनकी कविता
का ही कमाल है जो लोगों को आकर्षित कर रही है.सहज भाव का
यह कवि उदार भावना का सिपाही है.हृदय कोमल भावों का रूप है.
कभी भी गलत चीजें बर्दाश्त नहीं करता है.यह कवि का स्वाभिमान ही
है जो कविता के माध्यम से विरोध जताती रहती है

शब्दों का जादू ऐसा चलाते हैं कि लोग वास्तव में सोंचने के लिये मजबूर
हो जाते हैं.यह गुण उनकी सौम्यता का प्रतिबिम्ब है जो आमजन मानस
की बात करता है.यह कवि की महानता को दर्शाता है.विनम्र वेदना के
स्वामी के रूम में कवि बहुत ही सजग प्रहरी की तरह है.

कवि जयचन्द प्रजापति जी की कविता स्त्रियों की दशा,मानव जीवन
में संताप जीवन जीने वाले असहाय लोगों का हमदर्द है,धनिकों पर करारा
प्रहार करते हुये कहा कि यह धन कुछ समय की रौनक है.जो बाद में
कष्टकारी होता है.जीवन का अंत चोचलेबाजी में ही बीत जाता है.इन्हीं
सब कारणों से नौकरी के प्रति इनका रूझान नहीं हैं.सादा जीवन को
महानता कार रंग व जुनून मानते हैं.........





कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी' ...मोहब्बत

मोहब्बत
...........
मोहब्बत जिन्दगी में
जरूरी अंग है
इसके अभाव में
जीवन बदरंग है
कोई अर्थ नहीं
जीना मौत है
करो मोहब्बत सभी से
भरो रंग मेहब्बत का
बहो नये भावों में
करो कुछ नया
लिखो नवगीत
बदलो भाषा
जीवन जीने का
मोहब्बत का संदेश बिखेरो
जन जन तक पहुँचों


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी' वह दलित

वह दलित

वह दलित है
अपमान का घूँट पीता है
किया जाता है नंगा
सरे राह पीटता है
मूक है जनता
नहीं उठाती
उसकी आवाज
चुप रहने के लिये
कसा जाता है
उसकी जुबान
नहीं पिघलते
वे दरिन्दे
समझते हैं
महान कार्य में लिप्त हैं


जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

मेरी बातें...जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मेरी बातें...

मेरा जीवन कठिन समस्याओं से गुजरा है.पिताजी के चले 
जानें के बाद जैसे मेरे ऊपर समस्याओं का बोझ आ गया.
कोमल मानस पटल पर गिर पड़ा एक महान कष्ट .वह समय 
था जब पूरे देश में गरीबी जैसा वातावरण गाँव में था.उस समय
मेरे लिये  बहुत ही कष्टकारी समय था.कोई जमा पूँजी घर में न
थी.विकट परिस्थिति बन गई थी.माँ का मानस हृदय दो बच्चों 
को देखकर चिंहुक गया.क्या करे क्या न करे.यह विषय उसके 
लिये बड़ी संकट की घड़ी थी.

समय ने ली करवट
चली हवा बदरंग
उखड़ गया खूँटा
टूट गयी डोरी

उस समय पता नहीं कहाँ से अपार साहस आ गया और लग गई
हम लोगो के विकास में .एक महान घोर संग्राम चालू हो गया और 
इस महान संकट के समय तमाम लोगों द्वारा सामाजिक प्रताड़ना का
भागीदार बनना पड़ा.वह समस्या मेरी माँ के लिये बहुत घातक हथियार
की तरह था.जिसको सहना शायद टूट जाने से कम नहीं था.

साहस जोड़ रहा हूँ 
मन को ठेल रहा हूँ
बन गई माँ
सेवक हमारी

हम भाई बहन छोटे थे घर की विकट परिस्थिति के कारण बाल मन 
पर कठोर प्रहार भी सहना पड़ा यानी बालश्रम से जीवन गुजरने लगा.
पता नहीं चला की बचपन क्या होता है.वह भी हाथ से निकल गया.
सच में जीवन आसानी से नहीं चला.बहुत माथापच्ची भरा रहा.कोई 
उस समय साथ देने वाला नहीं था.खिलखिलाहट न आयी मन में.
उदासी का स्वर तड़पाता रहा.

मन तडपा रात भर
नहीं मिली खुशी
जी भर
तड़पता रहा
बचपने में
नहीं रास आयी
जिन्दगी का हर तिनका

पढ़ाई में तेज था लेकिन विकट हालात ने कमर तोड़ दी थी.इस हालत
को देख कर मन बहुत उदास रहता था.कई समस्यायों से घनीभूत मन
चिन्ता में डूबा रहता था.पढ़ाई का शौक खींचते खींचते स्नातक तक लाया.
पत्रकारिता का शौक ने पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा कोर्स कर लिया.अब भी
समस्यायें हटी नहीं है.डटी है लगातार अपना पाँव कम नहीं कर रही है.कुछ लोग
लालच के चक्कर में परेशान करने की नियत बनाते रहे लेकिन वे ज्यादा कामयाब
नहीं रहे..

अपनी समस्या से मेरे अंदर कविता का राग फूटने लगा.आजकल ज्यादा समय
कविता लिखनें पर खर्च कर रहा हूँ.कविता मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई है.
समाज में जो अमानवीयता है वह सारी चीजें देख कर मेरा मन बार बार व्यथित
हो जाता है.बेचैनी सी होने लगती है .गलत बातें हमारे मन को झकझोरती रहती
है.

देखो दूसरे का भी दुःख
अपने में क्यों जलते हो
नये रंग में क्यों रहते हो
सरल हृदय रखो प्यारे
एक दिन अर्थी सब की उठेगी

मानवता से हीन व्यक्ति कभी सरल व सहज जिन्दगी नहीं जी सकता है.वह एक दिन 
कठोर काल के गाल में जायेगा.अगर अच्छा कार्य करोगे तो लोग मरणोपरान्त
भी याद करेंगें.

संस्कार रहित मन
बिना वस्त्र की देह है
नंगा बदन होता है
वह शून्य है
जिसे असर नहीं कविता का
वह मरा जन्तु है

कवि का मन तब फटता है जब गहरा आपात समय आता है तो सारा संबल का
काम उसके अंदर उपजने वाली कविता ही ढाढस देती है.यही कविता ने मुझे 
ढाढस देकर जीला रही है.



जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226





मेरी बातें...जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मेरी बातें...

मेरा जीवन कठिन समस्याओं से गुजरा है.पिताजी के चले 
जानें के बाद जैसे मेरे ऊपर समस्याओं का बोझ आ गया.
कोमल मानस पटल पर गिर पड़ा एक महान कष्ट .वह समय 
था जब पूरे देश में गरीबी जैसा वातावरण गाँव में था.उस समय
मेरे लिये  बहुत ही कष्टकारी समय था.कोई जमा पूँजी घर में न
थी.विकट परिस्थिति बन गई थी.माँ का मानस हृदय दो बच्चों 
को देखकर चिंहुक गया.क्या करे क्या न करे.यह विषय उसके 
लिये बड़ी संकट की घड़ी थी.

समय ने ली करवट
चली हवा बदरंग
उखड़ गया खूँटा
टूट गयी डोरी

उस समय पता नहीं कहाँ से अपार साहस आ गया और लग गई
हम लोगो के विकास में .एक महान घोर संग्राम चालू हो गया और 
इस महान संकट के समय तमाम लोगों द्वारा सामाजिक प्रताड़ना का
भागीदार बनना पड़ा.वह समस्या मेरी माँ के लिये बहुत घातक हथियार
की तरह था.जिसको सहना शायद टूट जाने से कम नहीं था.

साहस जोड़ रहा हूँ 
मन को ठेल रहा हूँ
बन गई माँ
सेवक हमारी

हम भाई बहन छोटे थे घर की विकट परिस्थिति के कारण बाल मन 
पर कठोर प्रहार भी सहना पड़ा यानी बालश्रम से जीवन गुजरने लगा.
पता नहीं चला की बचपन क्या होता है.वह भी हाथ से निकल गया.
सच में जीवन आसानी से नहीं चला.बहुत माथापच्ची भरा रहा.कोई 
उस समय साथ देने वाला नहीं था.खिलखिलाहट न आयी मन में.
उदासी का स्वर तड़पाता रहा.

मन तडपा रात भर
नहीं मिली खुशी
जी भर
तड़पता रहा
बचपने में
नहीं रास आयी
जिन्दगी का हर तिनका

पढ़ाई में तेज था लेकिन विकट हालात ने कमर तोड़ दी थी.इस हालत
को देख कर मन बहुत उदास रहता था.कई समस्यायों से घनीभूत मन
चिन्ता में डूबा रहता था.पढ़ाई का शौक खींचते खींचते स्नातक तक लाया.
पत्रकारिता का शौक ने पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा कोर्स कर लिया.अब भी
समस्यायें हटी नहीं है.डटी है लगातार अपना पाँव कम नहीं कर रही है.कुछ लोग
लालच के चक्कर में परेशान करने की नियत बनाते रहे लेकिन वे ज्यादा कामयाब
नहीं रहे..

अपनी समस्या से मेरे अंदर कविता का राग फूटने लगा.आजकल ज्यादा समय
कविता लिखनें पर खर्च कर रहा हूँ.कविता मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई है.
समाज में जो अमानवीयता है वह सारी चीजें देख कर मेरा मन बार बार व्यथित
हो जाता है.बेचैनी सी होने लगती है .गलत बातें हमारे मन को झकझोरती रहती
है.

देखो दूसरे का भी दुःख
अपने में क्यों जलते हो
नये रंग में क्यों रहते हो
सरल हृदय रखो प्यारे
एक दिन अर्थी सब की उठेगी

मानवता से हीन व्यक्ति कभी सरल व सहज जिन्दगी नहीं जी सकता है.वह एक दिन 
कठोर काल के गाल में जायेगा.अगर अच्छा कार्य करोगे तो लोग मरणोपरान्त
भी याद करेंगें.

संस्कार रहित मन
बिना वस्त्र की देह है
नंगा बदन होता है
वह शून्य है
जिसे असर नहीं कविता का
वह मरा जन्तु है

कवि का मन तब फटता है जब गहरा आपात समय आता है तो सारा संबल का
काम उसके अंदर उपजने वाली कविता ही ढाढस देती है.यही कविता ने मुझे 
ढाढस देकर जीला रही है.



जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226





मेरी बातें...जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मेरी बातें...

मेरा जीवन कठिन समस्याओं से गुजरा है.पिताजी के चले 
जानें के बाद जैसे मेरे ऊपर समस्याओं का बोझ आ गया.
कोमल मानस पटल पर गिर पड़ा एक महान कष्ट .वह समय 
था जब पूरे देश में गरीबी जैसा वातावरण गाँव में था.उस समय
मेरे लिये  बहुत ही कष्टकारी समय था.कोई जमा पूँजी घर में न
थी.विकट परिस्थिति बन गई थी.माँ का मानस हृदय दो बच्चों 
को देखकर चिंहुक गया.क्या करे क्या न करे.यह विषय उसके 
लिये बड़ी संकट की घड़ी थी.

समय ने ली करवट
चली हवा बदरंग
उखड़ गया खूँटा
टूट गयी डोरी

उस समय पता नहीं कहाँ से अपार साहस आ गया और लग गई
हम लोगो के विकास में .एक महान घोर संग्राम चालू हो गया और 
इस महान संकट के समय तमाम लोगों द्वारा सामाजिक प्रताड़ना का
भागीदार बनना पड़ा.वह समस्या मेरी माँ के लिये बहुत घातक हथियार
की तरह था.जिसको सहना शायद टूट जाने से कम नहीं था.

साहस जोड़ रहा हूँ 
मन को ठेल रहा हूँ
बन गई माँ
सेवक हमारी

हम भाई बहन छोटे थे घर की विकट परिस्थिति के कारण बाल मन 
पर कठोर प्रहार भी सहना पड़ा यानी बालश्रम से जीवन गुजरने लगा.
पता नहीं चला की बचपन क्या होता है.वह भी हाथ से निकल गया.
सच में जीवन आसानी से नहीं चला.बहुत माथापच्ची भरा रहा.कोई 
उस समय साथ देने वाला नहीं था.खिलखिलाहट न आयी मन में.
उदासी का स्वर तड़पाता रहा.

मन तडपा रात भर
नहीं मिली खुशी
जी भर
तड़पता रहा
बचपने में
नहीं रास आयी
जिन्दगी का हर तिनका

पढ़ाई में तेज था लेकिन विकट हालात ने कमर तोड़ दी थी.इस हालत
को देख कर मन बहुत उदास रहता था.कई समस्यायों से घनीभूत मन
चिन्ता में डूबा रहता था.पढ़ाई का शौक खींचते खींचते स्नातक तक लाया.
पत्रकारिता का शौक ने पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा कोर्स कर लिया.अब भी
समस्यायें हटी नहीं है.डटी है लगातार अपना पाँव कम नहीं कर रही है.कुछ लोग
लालच के चक्कर में परेशान करने की नियत बनाते रहे लेकिन वे ज्यादा कामयाब
नहीं रहे..

अपनी समस्या से मेरे अंदर कविता का राग फूटने लगा.आजकल ज्यादा समय
कविता लिखनें पर खर्च कर रहा हूँ.कविता मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई है.
समाज में जो अमानवीयता है वह सारी चीजें देख कर मेरा मन बार बार व्यथित
हो जाता है.बेचैनी सी होने लगती है .गलत बातें हमारे मन को झकझोरती रहती
है.

देखो दूसरे का भी दुःख
अपने में क्यों जलते हो
नये रंग में क्यों रहते हो
सरल हृदय रखो प्यारे
एक दिन अर्थी सब की उठेगी

मानवता से हीन व्यक्ति कभी सरल व सहज जिन्दगी नहीं जी सकता है.वह एक दिन 
कठोर काल के गाल में जायेगा.अगर अच्छा कार्य करोगे तो लोग मरणोपरान्त
भी याद करेंगें.

संस्कार रहित मन
बिना वस्त्र की देह है
नंगा बदन होता है
वह शून्य है
जिसे असर नहीं कविता का
वह मरा जन्तु है

कवि का मन तब फटता है जब गहरा आपात समय आता है तो सारा संबल का
काम उसके अंदर उपजने वाली कविता ही ढाढस देती है.यही कविता ने मुझे 
ढाढस देकर जीला रही है.



जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226





मेरी बातें...जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मेरी बातें...

मेरा जीवन कठिन समस्याओं से गुजरा है.पिताजी के चले 
जानें के बाद जैसे मेरे ऊपर समस्याओं का बोझ आ गया.
कोमल मानस पटल पर गिर पड़ा एक महान कष्ट .वह समय 
था जब पूरे देश में गरीबी जैसा वातावरण गाँव में था.उस समय
मेरे लिये  बहुत ही कष्टकारी समय था.कोई जमा पूँजी घर में न
थी.विकट परिस्थिति बन गई थी.माँ का मानस हृदय दो बच्चों 
को देखकर चिंहुक गया.क्या करे क्या न करे.यह विषय उसके 
लिये बड़ी संकट की घड़ी थी.

समय ने ली करवट
चली हवा बदरंग
उखड़ गया खूँटा
टूट गयी डोरी

उस समय पता नहीं कहाँ से अपार साहस आ गया और लग गई
हम लोगो के विकास में .एक महान घोर संग्राम चालू हो गया और 
इस महान संकट के समय तमाम लोगों द्वारा सामाजिक प्रताड़ना का
भागीदार बनना पड़ा.वह समस्या मेरी माँ के लिये बहुत घातक हथियार
की तरह था.जिसको सहना शायद टूट जाने से कम नहीं था.

साहस जोड़ रहा हूँ 
मन को ठेल रहा हूँ
बन गई माँ
सेवक हमारी

हम भाई बहन छोटे थे घर की विकट परिस्थिति के कारण बाल मन 
पर कठोर प्रहार भी सहना पड़ा यानी बालश्रम से जीवन गुजरने लगा.
पता नहीं चला की बचपन क्या होता है.वह भी हाथ से निकल गया.
सच में जीवन आसानी से नहीं चला.बहुत माथापच्ची भरा रहा.कोई 
उस समय साथ देने वाला नहीं था.खिलखिलाहट न आयी मन में.
उदासी का स्वर तड़पाता रहा.

मन तडपा रात भर
नहीं मिली खुशी
जी भर
तड़पता रहा
बचपने में
नहीं रास आयी
जिन्दगी का हर तिनका

पढ़ाई में तेज था लेकिन विकट हालात ने कमर तोड़ दी थी.इस हालत
को देख कर मन बहुत उदास रहता था.कई समस्यायों से घनीभूत मन
चिन्ता में डूबा रहता था.पढ़ाई का शौक खींचते खींचते स्नातक तक लाया.
पत्रकारिता का शौक ने पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा कोर्स कर लिया.अब भी
समस्यायें हटी नहीं है.डटी है लगातार अपना पाँव कम नहीं कर रही है.कुछ लोग
लालच के चक्कर में परेशान करने की नियत बनाते रहे लेकिन वे ज्यादा कामयाब
नहीं रहे..

अपनी समस्या से मेरे अंदर कविता का राग फूटने लगा.आजकल ज्यादा समय
कविता लिखनें पर खर्च कर रहा हूँ.कविता मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई है.
समाज में जो अमानवीयता है वह सारी चीजें देख कर मेरा मन बार बार व्यथित
हो जाता है.बेचैनी सी होने लगती है .गलत बातें हमारे मन को झकझोरती रहती
है.

देखो दूसरे का भी दुःख
अपने में क्यों जलते हो
नये रंग में क्यों रहते हो
सरल हृदय रखो प्यारे
एक दिन अर्थी सब की उठेगी

मानवता से हीन व्यक्ति कभी सरल व सहज जिन्दगी नहीं जी सकता है.वह एक दिन 
कठोर काल के गाल में जायेगा.अगर अच्छा कार्य करोगे तो लोग मरणोपरान्त
भी याद करेंगें.

संस्कार रहित मन
बिना वस्त्र की देह है
नंगा बदन होता है
वह शून्य है
जिसे असर नहीं कविता का
वह मरा जन्तु है

कवि का मन तब फटता है जब गहरा आपात समय आता है तो सारा संबल का
काम उसके अंदर उपजने वाली कविता ही ढाढस देती है.यही कविता ने मुझे 
ढाढस देकर जीला रही है.



जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226





मंदिर और मस्जिद..कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मंदिर और मस्जिद

मार काट मचा है
धर्म के नाम पर
कैसा रंग बहा है
जहाँ देखो
वहाँ हल्ला मचा है
दंगा फसाद में
साधारण मानव को
बलि के लिये पुकारा जाता है
स्त्री व बच्चों को
काटा जाता है
तहस नहस करते हैं
सरकारी संपत्ति
यह खेल बहुत पुराना है
बड़ा मजा आता है
राजनीति का रंग जमता है
करोड़ों का
वारा न्यारा होता है
आज का भगवान विवश है
क्या करे
वह भी अपना ठिकाना ढूँढ रहा है


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़ 07880438226


शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी की कविता...तेरे होंठ

तेरे होंठ
..........
तेरे होंठ
कितने खूबसूरत
बहकती अदा
रंगों से भरी है
सजी है कली से
बार बार सोंचता हूँ
तेरी इन
मदहोश होंठों की चाहत
बना दिया है
प्रेमी
गीत गाता हूँ
हर रोज
नये नये
निहारता हूँ झरोंखों से
इन नाजुक होंठों को
कब तक
यह तड़पती जवानी होगी
बहुत तरसा हूँ
प्रिये!
तेरे खातिर
सहा हूँ
सीने में दर्द



जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी' की पीड़ा

जब मै कविता लिखता हूँ तो मेरी कविता में जीवन की सच्ची
सच्चाई होती है.उड़ेल देना चाहता हूँ कविता का मर्म और उसी
में सच्चा भाव भरने की कोशिश करता हूँ.समाज की स्धिति को
समूचा भाव बनाकर ही रचना की प्रस्तुति करता हूँ.मेरी एक कविता
देखिये..

बना है वह
झूठे का शहशांह
खेती करता है
तीन पॉच का
बना है नंबरदार
गरीबों को नोंच रहा है
उसकी मटियामेट कर रहा है

आज समाज में झूठे का दिखावा है.समाज के लोग बिगड़ गये है
मानवता डर रही है.काँप रहा है गरीब बेचारा .हाय हाय मची है
लेकिन गरीब का निवाला छिनने में उसको बड़ा मजा मिलता है .
वह अपने कृत्यों को सही ठहरा रहा है.

रो रहा है सच
आज उसका मन
दुःखी भाव बना है
गिड़गिड़ा रहा है
दुबका है सच
तन्हा है
बीच बाजार में

समाज में सच्चाई का दफन हो गया है.सच ठिकाना ढूँ ढ रहा है जीने का.
पगलाया है.आज ऐसी भयावह स्थिति है कि कोई किसी की बात सुन नहीं
रहा है.मानवता सिसक रही है.आसूँ बहा रही है.कैसा यह समय आया है.
मेरा मन कभी कभी बहुत व्यथित हो जाता है कि सच्ची सच्चाई खरीदने
पर भी नहीं मिलेगी.

दो पैसा कमा के
बन गया ठल्लू सेठ
मचल रही है जवानी
असहायों को पीटने के लिये
कैसा दुर्दिन आया है

कुछ लोग पैसा पाते ही सर्वश्रेष्ठ स्वयं को समझने लगे है.वे महानता की
श्रेणी में तुलना करने में हिचक नहीं रहें हैं.

सीधा सादा जीवन काटना मुश्किल हो गया है.सीधे पेड़ को लोग काटने में
निःसंकोच हो रहे हैं......


जयचन्द प्रजापति' कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी' के नवगीत...प्रेम का भाव है

प्रेम का भाव है
..........…......

मेरे रग में
देश की धार है
प्रेम का भाव है.

कई सालों से
खड़ा हूँ देश के लिये
रूप रंग लिये हुये
झंडा थामे हुये
हाथ में मिट्टी लिये हुये
नया मशाल जलाते हुये

चलते हुये
भीड़ में भी
प्रेम का घाव है.

उठा हूँ
अकेले ही
लड़ा हूँ दुश्मनों से
प्रेम का सौगात लिये
मंजिल पर डटा हूँ
किसी से कम नहीं हूँ

कहता हूँ
सहज लेता हूँ
जीत का भाव है

आखिरी साँस तक
कठोर राह तक
धर्म के मिशाल तक
दीन हीन के घर तक
बहता हुआ रस हूँ मैं
हर हाल तक लगा हूँ

यही मिशाल
यही सोंच के साथ
हमारा दाँव हैं.


जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226


स्वार्थ.जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' की कविता

स्वार्थ
.......
स्वार्थ ने
जिन्दगी के मायने बदल दिये हैं
लोग फायदे में
तल्लीन हैं
रगों में बह रहा है
स्वार्थ का खून
इसके लिये
कत्ल का हिसाब
बना रहे हैं
अपने ही रिश्तों को
गला काट रहें हैं
कैसा यह मर्ज है
दवा नहीं है
दवाखाने में


जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226


सोमवार, 11 अप्रैल 2016

मेहनतः जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'

मेहनत
.........
मेहनत जहाँ नहीं
रोता वहाँ बचपन
रूठी जवानी
बीत जाती
कलपते हुये
न बन पाती कहानी
सूखी डाली पर
नहीं खिलते फूल
मुरझाया सा चेहरे पर
हँसी लाने का
भयानक प्रयास
वह वहीं पड़ा रह जाता है
गिर पडता है
हल्की झोंकों से


जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी' की कविता ...किसान

किसान
.........
मेहनत करता किसान
सिकुड़ा हुआ
रात दिन
पड़ा खेतों में
निहारता फसल
हाथ पाव
चलाता खेतों में
कई दिन से बिन खाये
वह देश के लिये
फसल उगाता
नहीं लिखा जाता
उसका इतिहास
कफन पाने तक
इसी तरह
जीता है
सादगी मय जीवन


जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी '
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मों07880438226


कवि जयचन्द प्रजापति " कक्कूजी' की कविता.विद्या

विद्या
........
विद्या के अभाव में

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कू जी' की कविता.. यह शहर

यह शहर
............
यह शहर
कभी नहीँ बुलाता हमें
सादगी लिये
मैं पड़ा हूँ गाँवों में
काटता है मुझे
प्रतीत होता है
मत जाओ वहाँ
जहाँ मिट जायेंगीं
भीड़ में
अस्मिता


जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

रविवार, 10 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी' की कविता ...पिता

पिता
.......
पिता होता है सहारा
एक माली की तरह
नये नये रंग भरता है
एक सहारे की तरह
हर दुःख में
खड़ा होता है
सामाजिक विकास में
सहयोग करता है
निर्भीकता भरता है
जीवन को
रस से परिपूर्ण करता है
डर उन्हे होता है
जिनके बाप नहीं होते हैं
वह रोता है
अपनी किस्मत पर
वह खड़ा नहीं हो पाता है
जल्दी से पैरों पर
गिरा देते हैं
सामाजिक ठेकेदार
जीने तक के लिये छोड़ देते हैं
वह लड़ता बालक
विधवा माँ का
एक मात्र सहारा होता है


जयचन्द प्रजापति ' कक्कू जी'
जैतापुर, हंडिया. इलाहाबाद
मो.07880438226

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'. की कविता...कवि

कवि
......

कवि लिखता है
जमानें की दस्तूर को
परछाइयाँ समाज की
सहारा बनता है
समाज में असहायों का
खुद कुर्बान करता है
नई रचनाओं से
बेंचता है खुद की आत्मा को
लड़ता है
विसंगतियों से
सामाजिक मिलावट करने वालों को
सुनाता है खरी खोटी
हर तबके तक घूसता है
यहाँ वहाँ
जीता है खुद अभावों में
बहकता नहीं है किसी से कहने पर
अपनी रचनाओं में
न्याय को भरता रहता है
वह हर लड़ाई खुद लड़ता है
संघर्ष करते हुये
रात भर जागता है
लिखेगा सच्चा कवि
समाज की लकीर को
वह मरने को सौ बार तैयार है

जयचन्द प्रजापति ' कक्कू जी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
07880438226

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी ' की कविता ' माँ '

माँ
...

माँ होती है
सीधी गाय की तरह
भोलापन
सहज भाव से भरी
कोमल हृदय
सरलता की मूर्ति
दया का झलकता जाम
कई तरह की यातना सहते हुये
बच्चों के रगों में रहती है
दुनिया की सर्वश्रेष्ठों में
माँ प्रथम होती है
जीने की देती कला
करूणा से भरती हृदय
उड़ती हुई पतंग
बच्चों को थमाती हुई
वह भूल जाती है
वह माँ है
काम से थके हारे बच्चे से
माँ ही पूछती है भोजन
बाप,भाई,पत्नी,बहन
निर्दयी स्वर में पूछेंगें
कितना कमा के लाया
माँ का तात्पर्य
बिन माँ के बच्चे से पूछा जा सकता है



जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
07880438226

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

प्रजापति समाज और युवा...जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी'

वर्तमान समय एक बदलाव का दौर है.इस दौर में हम सब को बदलना चााहिये.
खासकर प्रजापति समाज की स्थिति पहले से बेहतर हुई है.जिस समाज में
पढ़े व लिखे लोग ज्यादा रहते हैं.वह समाज भी अधिक स्वस्थ रहता है.

पहले की स्थिति में प्रजापति की स्थिति बहुत ज्यादा ठीक नहीं रही है लेकिन
धीरे धीरे की सोंच ने आगे के पायदान पर पहुँचा दिया है.आज का युवा जागरूक है
उसमें सोंचने की स्थिति बहुत ही आधुनिक है.

  जयचन्द प्रजापति  'कक्कू जी'
  जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' की गजल

वे जिन्दगी भर हमें समझाते रहे
पता नहीं क्या खुद को समझते रहे
किसी की बात कभी नहीं सुना
अपनी ही बात जिन्दगी भर मनवाते रहे

वे प्यारे रात भर गलत सोंचते रहे
जिन्दगी की जंग कभी न जीतते रहे
यहाँ वहाँ गलत चक्कर लगाते रहे
बीच बाजार में वे पिटते रहे

गंदगी में रहने वाले गंदगी करते रहे
सारे जहाँ में वे कीचड़ उछालते रहे
कुछ कर न सके.षडयंत्र रचते रहे
अपने ही बिछाये जाल में फँसते रहे


जयचन्द प्रजापति  'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी' 'की कुछ यादें.

मैं बहुत ही गरीबी में पला बढ़ा.तमाम कोशिशों के बाद हम नहीं बढ़ सके.
वही रोना धोना लगा रहा.नून ले आओ.तेल नहीं है .गरीबी में पत्नी जी नाराज
हैं कि मेरा गहना नहीं बन सका .दुःख मुसीबतों से भरा यह घर यहाँ हँसनें का
मौका नहीं मिला, तीज त्योहार छोड़के.

जब पिताजी इस संसार से चले बसे, हमें प्रकृति के सहारे छोड़ दिया मुसीबतों का दौर
रहा.किसी तरह पेट पूजा हो जाये बहुत है.माँ बहुत मेहनती रही उसके मेहनत के
फलस्वरूप कुछ डिग्री हमने भी प्राप्त कर लिया लेकिन नियति की हवा ऐसी चली
कि हम कवि हो गये.कवि होना साधारण बात नहीं है.बड़ी रगड़ करनी पड़ी.तमाम
अनुभव को पार करना पड़ता है.

कहते है कि महान बनना आसान नहीं है.यह सचमुच सौ आना सहीं है.मेरे लगातार
प्रयास से मेरी कवि यात्रा निकल पड़ी है.लिखता हूँ बहुत कुछ जो समाज में घटनायें
हो रहीं हैं.जूझने वाले मेरे कविता में जगह पा रहें है.उनको मैं अपने लेखनी से अमर
कर रहा हूँ.

सरल व सहज भाषा पर अधिकार है.जन भावनाओं से भरा विचार नई रोशनी के साथ
शब्दों का खेल खेलता हूँ.कठोर भाषा मुझे तनिक भी नहीं भाते हैं.यह मेरे हिस्सा का
विषय नहीं है.

कठोर, चालाक व स्वार्थपरक परक लोग मुझे नहीं जमते हैं अगर मुझे पता चलता है कि
यह ऐसा है तो उससे दूरी बना लेता हूँ.ऐसे व्यक्ति हमारे दिल में जगह बनाने में सफल नहीं
हो पाते हैं.ऐसे लोग घातक होते हैं.ये लोगअपने फायदे के लिये अापकी छति में लगे रहते हैं
ऐसे लोगों से दूर रहने में ही अपना कर्तव्य समझना चाहिये.ये मौका पाते ही अपने जीवन मे
इकट्ठे किये सारे जहर आपके हलक में उतार देंगें.

मुसीबत का मारा इंसान महान अनुभव सीखता है.बहुत लोग मुँह लटकाये चले आयेंगें ये
ऐसे चालाक हैं कि वे आपको महान बुध्दु समझते हैं.काम निकलनें के बाद कभी नजर
नहीं आते हैं.ऐसे घटिया लोगों से बचकर,गरीब व अच्छे हृदय वाले का हिमायती बनिये.

साधारण जीवन जीकर महान हृदय पैदा किया जा सकता है.इसके लिये जूते मोजे.
टाई व मँहगे कपड़े खरीद कर पहननें से महान हृदय नहीं पैदा किया जा सकता है.
आप सोचिये की हम कार से जा रहें है तो हम महान गुण वाले हैं.अन्य लोगों को
वह कूड़ा करकट समझता है.यह एक साधारण व शुध्द लोगों पर सीधा सीधा किया
गया हमला है.




                                                                             जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
                                                                             जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद



कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' की कविता

फूल
......
फूल तेरी महक
मुझे झूमने को कहते हैं
बहाती हो मदहोशी
इस चमन में
रंग भरती हो
मदहोश होंठों पर
मुश्कान तुम्हारी
नजरों को पुकारे
बह जाओ
इस पुरवाई में
सुगन्ध फैलाओ
इस वतन में
ये फूल
माला बन जाओ
वीरों के गले का



जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद

कविताप्रजा..कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' की कविता

यह हवा
..........
यह हवा बहे
नित नये सुर में
हिचकोले भरे मन में
लहर मारे बीच धारे में
ले अंगड़ाई
देख सरसों के फूलों को
बहाये रस धार प्रेम का
पत्ता पत्ता गाये गीत तेरे
कहे छू लो मेरे होठों को
कहती गाथा
सदियों की
रंग भरे उजाला
पगडंडियों में.

 जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी'
 जैतापुर,हंडिया, इलाहाबाद


मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

कविताप्रजा..कवि जयचन्द प्रजापति की कविता..हमारे कैलाश गौतम जी

हमारे कैलाश गौतम जी
..............................
ठेठ कविता सबसे पहले
फूटी गौतम जी के कण्ठों से
स्वर दिया रंग देहाती
गाँव की बोली को
गाँव की भौजी को
खेत खलिहानों को
चोर,उचक्कों को
खूब समझाया
कोर्ट कचेहरी की बात
गाँव की हरियाली को
पगडंडी पर खड़ी भौजी के घूँघट को
निहारे सरसों की चूनर को
संगम तट से पंचायत घर तक
लगाया ठहाका जोर से
मंचों के शान थे
गँवई बातें
विरही रातें
गाँव सिवानों को
खड़खड़िया साइकिल की बातें
अमवसा क मेला
खूब देखे जवानी में
गुप्तेसरा की बेइमानी पर
उनका दिल ठनका
बड़की भौजी की मेहनत को
खूब सराहा
बेटे को कचेहरी से
दूर रहने को कहा
बढई की गलती से
कुर्सी के लिये
रोज मचा है मारामारी
कह गये सब
हमारे कैलाश गौतम जी.

जयचन्द प्रजापति
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

कविता प्रजा..जयचन्द प्रजापति की रचना.. इलाहाबाद के निराला

इलाहाबाद के निराला
.…...…..................
इलाहाबाद के निराला
सब जन की आवाज थे
उनकी कविता लड़ी
असहायों के लिये
कलम रूकी नहीं
फौलाद की तरह
गरीबों के कवच थे
भीतर तक झकझोरा
उन गद्दारों को
जिसने निराला को भी अपमानित किया
दुःखों को झेला
आर्थिक हालातों से जुझते हुये
स्वाभिमान को गिरने नहीं दिया
लिखा यहीं पर
वह तोड़ती पत्थर
यहीं से आवाज निकली कवि की
दीन हीनों की व्यथा की
पाखण्डियों को भी ललकारा
अनवरत लिखे
बिना रूके हुये
उनकी आवाज बनते गये
ऐसे थे निराला

              जयचन्द प्रजापति
              जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
               07880438226

कविताप्रजा..इलाहाबाद का कवि जयचन्द प्रजापति

इलाहाबाद का कवि
.........................
इलाहाबाद का कवि
गरीबी में मुसीबतों को सहता हुआ
लिख रहा है कविता
संघर्ष से बना है कलेजा
सामाजिक झंझावतों से
दर्द लिये कविता का
हंडिया के जैतापुर गाँव में
रचना लिखता पड़ा है
देख रहा है पीड़ा
गिरे हुये समाज का
मानवता कराह रही है
कवि हुंकार भर रहा है
जीने की राह लिये
डटा खड़ा है मानवता के पथ पर
देख रहा है विधवा की सूरत
देख रहा है गाँव का हाल
समझ रहा है दुनियादारी
कविता का डंका पीट रहा है
सरकार को ललकार रहा है
असहायों को न्याय दिला रहा है
इलाहाबाद का कवि



कविताप्रजा..जयचन्द प्रजापति की रचना..इलाहाबाद

इलाहाबाद
...............

इलाहाबाद एक शहर
कवियों का शहर
साहित्य की पहली फूटी कविता
कवि के लिये
बसा है इलाहाबाद
दर्द,पीड़ा व कराह
साहित्य का
यहीं है बसेरा
जीने की पहली पसन्द
अध्यात्म का संगम
कविता रचने वाले
देखो व डूबो
इलाहाबाद की तहजीब में
पी लो रस साहित्य का
जो नहीं देखा इलाहाबाद
वह असली कवि नहीं है.

               जयचन्द प्रजापति

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

कविताप्रजा..कवि जयचन्द प्रजापति की कविता


मेरा हाथ


मेरा हाथ
मेरा साथ देता है
जीवन भर मेरे लिये
वह संघर्ष करता है
पैरवी करता है
दुःख की घड़ी में नहीं छोड़ता है
सच्चे दोश्त की तरह
मेरे सपने में
पूरा सहयोग करता है
मेरे अंत समय तक
खड़ा रहता है
किले की तरह



         जयचन्द प्रजापति

कविताप्रजा..जयचन्द प्रजापति की रचना

यह किताब

यह किताब
दोश्त की तरह है
नई आशा की किरण देती है
नये जीवन में
एक नया पंख देती है
नई उड़ान के साथ
प्रेम का गीत सुनाती है
यह कभी धोखा नहीं देती है
हमसफर की तरह
हमारा साथ देती है



जयचन्द प्रजापति

साहित्यकार जयचन्द प्रजापति की कविता...इलाहाबाद के गाँव

इलाहाबाद के गाँव
.......................
इलाहाबाद के गाँव
खेती से सजे हैं 
गाँव में बनी पगडंडियाँ
सरसों से सजा
गाँव की सूरत
उसी में बैठी
गाँव की दुल्हन
घूँघट से झाँके
नदी,झरने व सिवानों को
बैलों की जोड़ी
खेतों की जुताई करते हुये
यहाँ के आमों पर बैठी कोयल
जगाती नन्हें नन्हें बच्चों को
कू कू की आवाज से
नीम की डाली पर
कौआ मेहमानों का 
आने का संदेश दे रहा है
वहीं गौरैया आँगन में
फुदक रही है
किसान खेतों में है
उसकी घरनी पानी लेकर जाते हुये
गाँव में भौंकते कुत्ते
पोखरों पर बैठी
गाँव की छोकरी को
निहारते हुये लोग
भूलता नहीं है
इलाहाबाद के अमरूद
यही है गाँव की रंगत


         जयचन्द प्रजापति
         जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद

साहित्यकार जयचन्द प्रजापति की रचना.. वह तोड़ती पत्थर


कवि जयचन्द प्रजापति की कविता...यही है असली इलाहाबाद.

यही है असली इलाहाबाद
.................................
यही है असली इलाहाबाद
साहित्य में डूबा है
संगम तट पर हिलोरे लेता
नया कवि यहीं से उपजता है
यहाँ होती है रात दिन
साहित्य की खेती
फूटता है शब्दों का रंग
कविता.गजल,शायरी,गीत कहानी
निकले कलम से उपन्यास की रानी
बहकते कदम को
मिलता है साहित्य का छाँव
सच्चा हृदय यहीं से उपजता है
यही है इलाहाबाद
कहते जाओ,सुनते जाओ
धरा पर है राग रागिनी
बाँहों में थामें है
नई सतरंगी रूप
घूँघट खोल निहारो इलाहाबाद को
प्रेम की रस धारा फूटती है
नई नवेली दुल्हन के होंठों से
निकलता है सावन
चाँद भी निहारे इलाहाबाद को
साहित्य की जननी
इलाहाबाद की तहजीब है
यहीं के रोड पर
वह तोड़ती पत्थर
गंगा यमुना का जल
धोता है ललाट इलाहाबाद का
यहीं उपजी है मधुशाला
यहीं से उपजा है निराला
महादेवी की आह
कैलाश गौतम का ठहाका
यहीं की शान है
हिन्दी उर्दू की भाषा से
सजा है हिन्दुस्तानी जुबान से
यही है असली इलाहाबाद


                          जयचन्द प्रजापति
                          जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद

रविवार, 3 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति की हाइकु कवितायें

 (1)

प्रकृति रंग
हरा करे हृदय
हँसे ये मन

(2)

ये सँवारती
मनोहर रूप की
हँसी लाती है

(3)

सावन आया
हरियाली समाया
पूरे समय

(4)

हर तरह
तेरी है जयकार
सुनो पुकार

(5)

यह सागर
लहराता मधुर
प्रेम का गीत

             जयचन्द प्रजापति

शायर जयचन्द प्रजापति की शायरी

निगाह उठा के चलना बुरी आदत नहीं है
गलत निगाह रखना शहादत नहीं है

जुर्म करने वाले खुद जुर्म के शिकार होतें हैं
मरनें के बाद वे भी कब्र में ही होतें हैं

शहर जाना कोई मुश्किल नहीं होता है
शहर में रहना मुश्किल होता है

इस जहाँ का गम कैसे मिटेगी प्यारे
नजर सराफत की होगी तो कटेगी प्यारे

हमारे जीने का कोई रंग नहीं नजर आता है
एक दूसरे पर जीना नहीं आता है

                                       जयचन्द प्रजापति


कवि जयचन्द प्रजापति की शायरी

मेरा भी कुछ अहमियत है इस जमाने में दोश्तों
मै बिगड़ा भले हूँ इस शहर में मेरे प्यारे दोश्तों

कभी सोंचता हूँ इस जमाने में इतनी बेरूखी क्यों
लोग एक दूसरे का गला घोंटते हैं इस जमानें में क्यों

इंसानियत के गुम होनें का क्या कारण है
गंदे कामों के लिये जान देना अकारण है

शहर में वे जाकर चुपके से बस गयें हैं
गाँव में भी खलेआम हो गयी है हैवानियत

गिरे को कौन उठाने आता है इस जमानें में
गिरे हुये से पहले वे गिरे होतें हैं इस जमानें में

                          जयचन्द प्रजापति

कवि जयचन्द प्रजापति की कविता...यह धरती

यह धरती
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यह धरती कितनी प्यारी
बोझ सहती है
हमारे कुकर्मों की
सहनशीलता
कितना मधुमय है
सहती है दर्द कितना
हम बच्चों के लिये
धरती माँ
कितनी धैर्यशाली है
नहीं रोती है
कितनी करूण है
सहने की पाठ पढ़ाती है

            जयचन्द प्रजापति



जयचन्द प्रजापति का गाँव जैतापुर

जैतापुर गाँव इलाहाबाद के हंडिया तहसील में स्थित है.यहाँ के लोग बहुत ही सीधे सादे
है.यहाँ एक प्राथमिक पाठशाला है जहाँ गरीब घर के बच्चे पढ़ने आते है.यहाँ एक
इंटर काँलेज है.इस गाँव में एक हॉस्पिटल भी है.यहाँ के लोग अधिकांशतः पढ़े लिखे
लोग रहते हैं.यहाँ खेती से अधिकांशतः लोग जुड़े है.कई लोग सरकारी नौकरी भी
करते हैं.

यहाँ का वातावरण बहुत ही अच्छा व अनुकूल है.हिन्दी व भोजपुरी अवधी यहाँ की
प्रमुख भाषा है.कुछ लोग इंगलिस में भी बात करते हैं. इस सीधे सादे गाँव में कवि व
लेखक जयचन्द प्रजापति जी रहते हैं.यहीं पर रह कर साहित्यिक जीवन जी रहें हैं
इनकी रचना में अमानवीयता पर घोर विद्रोह हैं. पाखडिंयों पर व्यंग्य कसते हैं.

इस गाँव में सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरत मंदों को प्राप्त हुआ है.हिन्दुओं का यह
गाँव है.इस गाँव में जनरल,ओबीसी,एससी व,एसटी के लोग रहतें हैं.पूर्ण सामंजस्य वाला
गाँव है.कई मंदिर भी बने हुये हैं.मू्र्तिपूजा में लोगों का भरोसा कुछ ज्यादा है.लोग लड़कियों
की पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देते है.

कवि जयचन्द प्रजापति की कविता...शराब

शराब
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कुछ बिगड़े लोगों की
धुन होती है शराब
पीना उनकी सोहरत है
मजे से जाते हैं मधुशाला
लेते है शराब का शबाब
पीटते हैं निर्दोष बीबी बच्चों को
बेचते हैं अस्मिता
शराब की खातिर
वे समझते हैं बादशाह
जिगर को गँवा के लौटते हैं
जमाने को जीतने की चाहत
नशें में शराफत लिये
घूमते हैं
पूरे समय सड़क पर
बदनसीब औरतों व बच्चों को
लीलती यह शराब
एक दिन सबकुछ बेंचकर
लौटता है शाम को
हाथ में खाली बोतल लिये

              जयचन्द प्रजापति


शनिवार, 2 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता 'मेरा कुत्ता'

मेरा कुत्ता
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मेरा कुत्ता सादगी से भरा है
नौ मन खाता है
तेरह घंटे खर्राटे लेता है
बालब्रह्मचारी का घूँघटओढ़े है
वफादारी तो बचपन से है
नई उमर थी
नया खून उबाल मारा
जब मुंशी जी की कुतिया को देखा
नीद गई उसकी
भूख भई छूमंतर
ली एक रात करवटें
आव न सूझा ताव
लगा दी छलांग मुंशी के घर
सारा ब्रह्मचर्य टूटा
ढूँढ रहा हूँ मैं
गया कहाँ वफादार
नजर पड़ी
जमीन खिसकी
प्रियतमा के साथ
रासलीला कर रहा था
होगी मेरी बदनामी
चुपके घर लाया
बहुत समझाया
एक न माना
बंदा जिगर देने को था तैयार
मेरी तो मरणशैया थी तैयार

               जयचन्द प्रजापति



कवि जयचन्द प्रजापति की कविता

यह चींटी
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यह चींटी
बनाती है मेहनत से टीला
कड़ा परिश्रम करके
इमारत खड़ी करती है
रूके न थके
चलती जाये पथ पर
रोज रोज मेहनत से
नहीं होती बीमार
कितनी सीधी होती है
निर्मल मन से
रचना करती है
नये घरौधें का
सपने सच करती है
यह नन्ही चींटी
सबक सिखाती है
आलसी तन वालों को



                  जयचन्द प्रजापति

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति का काव्य

भगवान
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भगवान नहीं सताता
किसी को
मन में धीर धरो
नया दिन आयेगा
नव विहान लायेगा
नव गीत गायेगा
नई कलियाँ
नया उपवन
तेरा रूप सतरंगी
भगवान
जो करता है तू
सब शुभ है

          जयचन्द प्रजापति


कवि जयचन्द प्रजापति की प्रकृति रचना

यह प्रकृति
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यह प्रकृति
मुझे बुलाती है
रूप सँवारती है
नित नये सिवानों में
खेतों,खलियानों में
देखें रूप तेरा
ये झरने गाते हैं
पंछी सुर में गीत सुनाते हैं
नदियाँ कल कल करती हैं
ये तारें.ये चंदा
प्रेम रस बरसाते हैं
करूणा,दया का पाठ पढ़ाते हैं
यह प्रकृति
मुझे नव गुण देती है

              जयचन्द प्रजापति

कवि जयचन्द प्रजापति की रचना

पानी

पानी बिन
जीवन सूना
पानी से रंग बने चोखा
पानी ही सबकुछ
पानी गया
जीवन गया
नीरस भई जिन्दगी
बचाओ पानी प्यारे
भोर भई जागो प्यारे



             जयचन्द प्रजापति

कवि जयचन्द प्रजापति की व्यंग रचना

यह भ्रष्ट्राचार

यह भ्रष्ट्राचार
कब मिटेगा नेतागण
कब तक झूठे वादे करोगे
शरम करो अब भी
भारत माँ रो रही है
जनता का फीगर देखो
उसके चेहरे की झुर्रियाँ देखो
विधवा की लाचारी देखो
मर रहा किसान खेती करके
नवजवानों की टोली देखो
माँग रहा है नौकरी
अपने ही रो रहे हैं,अपने ही देश में
कैसी पीड़ा है
जागो मेरे भाई
भ्रष्ट्राचार खत्म करो प्यारों
पूर्ण भरोसा है
आपके दीन ईमान पर
रत्ती भर देर न करो न्यारों
भारत माँ माँग रही है न्याय


         जयचन्द प्रजापति