निगाह उठा के चलना बुरी आदत नहीं है
गलत निगाह रखना शहादत नहीं है
जुर्म करने वाले खुद जुर्म के शिकार होतें हैं
मरनें के बाद वे भी कब्र में ही होतें हैं
शहर जाना कोई मुश्किल नहीं होता है
शहर में रहना मुश्किल होता है
इस जहाँ का गम कैसे मिटेगी प्यारे
नजर सराफत की होगी तो कटेगी प्यारे
हमारे जीने का कोई रंग नहीं नजर आता है
एक दूसरे पर जीना नहीं आता है
जयचन्द प्रजापति
गलत निगाह रखना शहादत नहीं है
जुर्म करने वाले खुद जुर्म के शिकार होतें हैं
मरनें के बाद वे भी कब्र में ही होतें हैं
शहर जाना कोई मुश्किल नहीं होता है
शहर में रहना मुश्किल होता है
इस जहाँ का गम कैसे मिटेगी प्यारे
नजर सराफत की होगी तो कटेगी प्यारे
हमारे जीने का कोई रंग नहीं नजर आता है
एक दूसरे पर जीना नहीं आता है
जयचन्द प्रजापति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें