शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी की कविता...तेरे होंठ

तेरे होंठ
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तेरे होंठ
कितने खूबसूरत
बहकती अदा
रंगों से भरी है
सजी है कली से
बार बार सोंचता हूँ
तेरी इन
मदहोश होंठों की चाहत
बना दिया है
प्रेमी
गीत गाता हूँ
हर रोज
नये नये
निहारता हूँ झरोंखों से
इन नाजुक होंठों को
कब तक
यह तड़पती जवानी होगी
बहुत तरसा हूँ
प्रिये!
तेरे खातिर
सहा हूँ
सीने में दर्द



जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

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