रविवार, 10 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी'. की कविता...कवि

कवि
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कवि लिखता है
जमानें की दस्तूर को
परछाइयाँ समाज की
सहारा बनता है
समाज में असहायों का
खुद कुर्बान करता है
नई रचनाओं से
बेंचता है खुद की आत्मा को
लड़ता है
विसंगतियों से
सामाजिक मिलावट करने वालों को
सुनाता है खरी खोटी
हर तबके तक घूसता है
यहाँ वहाँ
जीता है खुद अभावों में
बहकता नहीं है किसी से कहने पर
अपनी रचनाओं में
न्याय को भरता रहता है
वह हर लड़ाई खुद लड़ता है
संघर्ष करते हुये
रात भर जागता है
लिखेगा सच्चा कवि
समाज की लकीर को
वह मरने को सौ बार तैयार है

जयचन्द प्रजापति ' कक्कू जी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
07880438226

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