सोमवार, 4 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की कविता...यही है असली इलाहाबाद.

यही है असली इलाहाबाद
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यही है असली इलाहाबाद
साहित्य में डूबा है
संगम तट पर हिलोरे लेता
नया कवि यहीं से उपजता है
यहाँ होती है रात दिन
साहित्य की खेती
फूटता है शब्दों का रंग
कविता.गजल,शायरी,गीत कहानी
निकले कलम से उपन्यास की रानी
बहकते कदम को
मिलता है साहित्य का छाँव
सच्चा हृदय यहीं से उपजता है
यही है इलाहाबाद
कहते जाओ,सुनते जाओ
धरा पर है राग रागिनी
बाँहों में थामें है
नई सतरंगी रूप
घूँघट खोल निहारो इलाहाबाद को
प्रेम की रस धारा फूटती है
नई नवेली दुल्हन के होंठों से
निकलता है सावन
चाँद भी निहारे इलाहाबाद को
साहित्य की जननी
इलाहाबाद की तहजीब है
यहीं के रोड पर
वह तोड़ती पत्थर
गंगा यमुना का जल
धोता है ललाट इलाहाबाद का
यहीं उपजी है मधुशाला
यहीं से उपजा है निराला
महादेवी की आह
कैलाश गौतम का ठहाका
यहीं की शान है
हिन्दी उर्दू की भाषा से
सजा है हिन्दुस्तानी जुबान से
यही है असली इलाहाबाद


                          जयचन्द प्रजापति
                          जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद

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