रविवार, 24 अप्रैल 2016

जन जन के युवा कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

हिन्दी के विकास में अहम योगदान देने वाले सतत
विकास में लगे आदरणीय जयचन्द प्रजापति की
कविता जन जन की बात करती है.करूणा का स्वर
उभरता है.इनकी कविता आमजन मानस के दुःख
दर्दों को समेटे रहती है.जीवन को करीब से देखने वाले
कवि का हृदय कोमल भावों से भरा है.यही भाव उनकी
कविता को नये भाव को समेटे हुये है.ऐसा कवि जो जमीन
से जुड़ा कवि होता है वह समाज की सच्चाई को बेपर्दा करता
है.वह अपने कार्य से पीछे नहीं हटता है.

तमाम विघ्न बाधाओं को पार करते हुये कवि बहुत ही सरल व
सहज भाव से कविता के विकास में योगदान कर रहें हैं जिसको
नकारा नहीं जा सकता है.कर्मठता अाप के जीवन का अंग है
चहूँ दिशाओं में आप की कीर्ति बढ़ रही है.

संघर्ष जीवन का नाम है.जहाँ संघर्ष है वहाँ से अगर कविता
का उद्भव होता है तो कविता एक मिशाल बनती है.चिर परिचित
भाव देने वाला कवि पूरे भारत में प्रिय हो रहा है.यह इनकी कविता
का ही कमाल है जो लोगों को आकर्षित कर रही है.सहज भाव का
यह कवि उदार भावना का सिपाही है.हृदय कोमल भावों का रूप है.
कभी भी गलत चीजें बर्दाश्त नहीं करता है.यह कवि का स्वाभिमान ही
है जो कविता के माध्यम से विरोध जताती रहती है

शब्दों का जादू ऐसा चलाते हैं कि लोग वास्तव में सोंचने के लिये मजबूर
हो जाते हैं.यह गुण उनकी सौम्यता का प्रतिबिम्ब है जो आमजन मानस
की बात करता है.यह कवि की महानता को दर्शाता है.विनम्र वेदना के
स्वामी के रूम में कवि बहुत ही सजग प्रहरी की तरह है.

कवि जयचन्द प्रजापति जी की कविता स्त्रियों की दशा,मानव जीवन
में संताप जीवन जीने वाले असहाय लोगों का हमदर्द है,धनिकों पर करारा
प्रहार करते हुये कहा कि यह धन कुछ समय की रौनक है.जो बाद में
कष्टकारी होता है.जीवन का अंत चोचलेबाजी में ही बीत जाता है.इन्हीं
सब कारणों से नौकरी के प्रति इनका रूझान नहीं हैं.सादा जीवन को
महानता कार रंग व जुनून मानते हैं.........





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