शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की व्यंग रचना

यह भ्रष्ट्राचार

यह भ्रष्ट्राचार
कब मिटेगा नेतागण
कब तक झूठे वादे करोगे
शरम करो अब भी
भारत माँ रो रही है
जनता का फीगर देखो
उसके चेहरे की झुर्रियाँ देखो
विधवा की लाचारी देखो
मर रहा किसान खेती करके
नवजवानों की टोली देखो
माँग रहा है नौकरी
अपने ही रो रहे हैं,अपने ही देश में
कैसी पीड़ा है
जागो मेरे भाई
भ्रष्ट्राचार खत्म करो प्यारों
पूर्ण भरोसा है
आपके दीन ईमान पर
रत्ती भर देर न करो न्यारों
भारत माँ माँग रही है न्याय


         जयचन्द प्रजापति


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