शनिवार, 30 अप्रैल 2016

जयचन्द प्रजापति कक्कूजी की कविता

मेरा सपना
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मेरे भी सपनें हैं
जीता हूँ
भले अभावों में
रहता हूँ
मैं भी सपनों में
दिन भर करता हूँ
पूरा सपना
बहुत देर तक
लगा रहता हूँ
कुछ करना चाहता हूँ
अपने लिये
लेकिन दुर्भाग्य
नहीं पीछा छोड़ता है
फिर भी
हिम्मत के साथ
कई तरह के
कार्यों से
जीता हूँ
यह मेरा जीवन
हमेशा विवादों में होता है
सहजता समेंटे हुये
पड़ा हूँ
कवि बनने का
सपना बुन रहा हूँ


जयचन्द प्रजापति कक्कूजी
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो7880438226

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