शनिवार, 2 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति की हास्य कविता 'मेरा कुत्ता'

मेरा कुत्ता
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मेरा कुत्ता सादगी से भरा है
नौ मन खाता है
तेरह घंटे खर्राटे लेता है
बालब्रह्मचारी का घूँघटओढ़े है
वफादारी तो बचपन से है
नई उमर थी
नया खून उबाल मारा
जब मुंशी जी की कुतिया को देखा
नीद गई उसकी
भूख भई छूमंतर
ली एक रात करवटें
आव न सूझा ताव
लगा दी छलांग मुंशी के घर
सारा ब्रह्मचर्य टूटा
ढूँढ रहा हूँ मैं
गया कहाँ वफादार
नजर पड़ी
जमीन खिसकी
प्रियतमा के साथ
रासलीला कर रहा था
होगी मेरी बदनामी
चुपके घर लाया
बहुत समझाया
एक न माना
बंदा जिगर देने को था तैयार
मेरी तो मरणशैया थी तैयार

               जयचन्द प्रजापति



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