यह प्रकृति
.............
यह प्रकृति
मुझे बुलाती है
रूप सँवारती है
नित नये सिवानों में
खेतों,खलियानों में
देखें रूप तेरा
ये झरने गाते हैं
पंछी सुर में गीत सुनाते हैं
नदियाँ कल कल करती हैं
ये तारें.ये चंदा
प्रेम रस बरसाते हैं
करूणा,दया का पाठ पढ़ाते हैं
यह प्रकृति
मुझे नव गुण देती है
जयचन्द प्रजापति
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यह प्रकृति
मुझे बुलाती है
रूप सँवारती है
नित नये सिवानों में
खेतों,खलियानों में
देखें रूप तेरा
ये झरने गाते हैं
पंछी सुर में गीत सुनाते हैं
नदियाँ कल कल करती हैं
ये तारें.ये चंदा
प्रेम रस बरसाते हैं
करूणा,दया का पाठ पढ़ाते हैं
यह प्रकृति
मुझे नव गुण देती है
जयचन्द प्रजापति
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