इलाहाबाद का कवि
जाग रहा है
यह कवि
रात दिन
लिखता है
जीवन की गाथा
बहती पीड़ा रगों में
धूप सह रहा है
देख रहा नंगा भारत
गा रहा गीत
लघु रूप लिये
मन मन्दिर में
बसा है गरीबों की जयकार
देख रहा आतंक मन का
सहज चेतना लिये
जमा है इलाहाबाद में
लिख रहा है कविता
बार बार
मन खोजे
नव विहान
नई बेला में
बही नई जवानी
देखे मधुर तान संगम का
............................
जाग रहा है
यह कवि
रात दिन
लिखता है
जीवन की गाथा
बहती पीड़ा रगों में
धूप सह रहा है
देख रहा नंगा भारत
गा रहा गीत
लघु रूप लिये
मन मन्दिर में
बसा है गरीबों की जयकार
देख रहा आतंक मन का
सहज चेतना लिये
जमा है इलाहाबाद में
लिख रहा है कविता
बार बार
मन खोजे
नव विहान
नई बेला में
बही नई जवानी
देखे मधुर तान संगम का
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