सोमवार, 4 अप्रैल 2016

साहित्यकार जयचन्द प्रजापति की रचना.. वह तोड़ती पत्थर




वह तोड़ती पत्थर
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वह तोड़ती पत्थर
हाइवे पर
पसाना से भीगी
सूखे होंठ
टूटे सपनें लिये
कराहती हुई
उठाती हथौड़ा मैंनें देखा
उसको लम्बें पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
श्याम वर्ण लिये
मुखमण्डल पर उदासी
सूखी रोटी खाकर
नजर झुकाये
सपने बुझाये
कई महीनों से
लड़ती हुई समस्याओं से
बेटे के जिलाने के लिये
पति के शराब के लिये
वह तोड़ती पत्थर
चेहरे की झांइयाँ
कभी कभी वह देखती
सरपट भागती कारों को
सूख रही थी जवानी
कर्कश धूप में
नहीं लजाया सूरज
वह तोड़ती पत्थर


                जयचन्द प्रजापति
                जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद


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