रविवार, 10 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति ' कक्कूजी' की कविता ...पिता

पिता
.......
पिता होता है सहारा
एक माली की तरह
नये नये रंग भरता है
एक सहारे की तरह
हर दुःख में
खड़ा होता है
सामाजिक विकास में
सहयोग करता है
निर्भीकता भरता है
जीवन को
रस से परिपूर्ण करता है
डर उन्हे होता है
जिनके बाप नहीं होते हैं
वह रोता है
अपनी किस्मत पर
वह खड़ा नहीं हो पाता है
जल्दी से पैरों पर
गिरा देते हैं
सामाजिक ठेकेदार
जीने तक के लिये छोड़ देते हैं
वह लड़ता बालक
विधवा माँ का
एक मात्र सहारा होता है


जयचन्द प्रजापति ' कक्कू जी'
जैतापुर, हंडिया. इलाहाबाद
मो.07880438226

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