शनिवार, 23 अप्रैल 2016

मेरी बातें...जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'

मेरी बातें...

मेरा जीवन कठिन समस्याओं से गुजरा है.पिताजी के चले 
जानें के बाद जैसे मेरे ऊपर समस्याओं का बोझ आ गया.
कोमल मानस पटल पर गिर पड़ा एक महान कष्ट .वह समय 
था जब पूरे देश में गरीबी जैसा वातावरण गाँव में था.उस समय
मेरे लिये  बहुत ही कष्टकारी समय था.कोई जमा पूँजी घर में न
थी.विकट परिस्थिति बन गई थी.माँ का मानस हृदय दो बच्चों 
को देखकर चिंहुक गया.क्या करे क्या न करे.यह विषय उसके 
लिये बड़ी संकट की घड़ी थी.

समय ने ली करवट
चली हवा बदरंग
उखड़ गया खूँटा
टूट गयी डोरी

उस समय पता नहीं कहाँ से अपार साहस आ गया और लग गई
हम लोगो के विकास में .एक महान घोर संग्राम चालू हो गया और 
इस महान संकट के समय तमाम लोगों द्वारा सामाजिक प्रताड़ना का
भागीदार बनना पड़ा.वह समस्या मेरी माँ के लिये बहुत घातक हथियार
की तरह था.जिसको सहना शायद टूट जाने से कम नहीं था.

साहस जोड़ रहा हूँ 
मन को ठेल रहा हूँ
बन गई माँ
सेवक हमारी

हम भाई बहन छोटे थे घर की विकट परिस्थिति के कारण बाल मन 
पर कठोर प्रहार भी सहना पड़ा यानी बालश्रम से जीवन गुजरने लगा.
पता नहीं चला की बचपन क्या होता है.वह भी हाथ से निकल गया.
सच में जीवन आसानी से नहीं चला.बहुत माथापच्ची भरा रहा.कोई 
उस समय साथ देने वाला नहीं था.खिलखिलाहट न आयी मन में.
उदासी का स्वर तड़पाता रहा.

मन तडपा रात भर
नहीं मिली खुशी
जी भर
तड़पता रहा
बचपने में
नहीं रास आयी
जिन्दगी का हर तिनका

पढ़ाई में तेज था लेकिन विकट हालात ने कमर तोड़ दी थी.इस हालत
को देख कर मन बहुत उदास रहता था.कई समस्यायों से घनीभूत मन
चिन्ता में डूबा रहता था.पढ़ाई का शौक खींचते खींचते स्नातक तक लाया.
पत्रकारिता का शौक ने पत्रकारिता से पीजी डिप्लोमा कोर्स कर लिया.अब भी
समस्यायें हटी नहीं है.डटी है लगातार अपना पाँव कम नहीं कर रही है.कुछ लोग
लालच के चक्कर में परेशान करने की नियत बनाते रहे लेकिन वे ज्यादा कामयाब
नहीं रहे..

अपनी समस्या से मेरे अंदर कविता का राग फूटने लगा.आजकल ज्यादा समय
कविता लिखनें पर खर्च कर रहा हूँ.कविता मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई है.
समाज में जो अमानवीयता है वह सारी चीजें देख कर मेरा मन बार बार व्यथित
हो जाता है.बेचैनी सी होने लगती है .गलत बातें हमारे मन को झकझोरती रहती
है.

देखो दूसरे का भी दुःख
अपने में क्यों जलते हो
नये रंग में क्यों रहते हो
सरल हृदय रखो प्यारे
एक दिन अर्थी सब की उठेगी

मानवता से हीन व्यक्ति कभी सरल व सहज जिन्दगी नहीं जी सकता है.वह एक दिन 
कठोर काल के गाल में जायेगा.अगर अच्छा कार्य करोगे तो लोग मरणोपरान्त
भी याद करेंगें.

संस्कार रहित मन
बिना वस्त्र की देह है
नंगा बदन होता है
वह शून्य है
जिसे असर नहीं कविता का
वह मरा जन्तु है

कवि का मन तब फटता है जब गहरा आपात समय आता है तो सारा संबल का
काम उसके अंदर उपजने वाली कविता ही ढाढस देती है.यही कविता ने मुझे 
ढाढस देकर जीला रही है.



जयचन्द प्रजापति 'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो़07880438226





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