शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' की गजल

वे जिन्दगी भर हमें समझाते रहे
पता नहीं क्या खुद को समझते रहे
किसी की बात कभी नहीं सुना
अपनी ही बात जिन्दगी भर मनवाते रहे

वे प्यारे रात भर गलत सोंचते रहे
जिन्दगी की जंग कभी न जीतते रहे
यहाँ वहाँ गलत चक्कर लगाते रहे
बीच बाजार में वे पिटते रहे

गंदगी में रहने वाले गंदगी करते रहे
सारे जहाँ में वे कीचड़ उछालते रहे
कुछ कर न सके.षडयंत्र रचते रहे
अपने ही बिछाये जाल में फँसते रहे


जयचन्द प्रजापति  'कक्कूजी'
जैतापुर, हंडिया, इलाहाबाद
मो.07880438226

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें