गुरुवार, 31 मार्च 2016

लेखक जयचन्द प्रजापति की दलित चेतना विचार.

         आज के दौर में जो बदलाव की आँधी चल रही है इस आँधी में दलित चेतना
का भाव बदला है.वे समाज के साथ बढ़ने के साथ तरक्की के राश्ते खोलें है. उनकी 
मानसिकता में नई सोंच व उर्जा का भाव संचरित हो रहा है.वे खुद दबी मानसिकता 
से उभरना चाहता है और एक दलित दृष्टिकोण को बदल रहा है.यह एक चेतना आधुनिक
बदलाव का परिणाम है जो आगे अनवरत बढ.ने में सहायक सिध्द हो रही है.
        अब दलित में नई सोंच के साथ उनके कार्य प्रणाली व व्यवहार तथा रोजगार की दिशा
में परिवर्तन नजर आ रहा है.वे बदले हैं अपनी मानसिकता.अभी बदलाव की और जरूरत है
परन्तु बदलाव तभी संभव है जब हर एक सोंचेगा कि किसी के यहाँ गिरवी मजदूर होकर
काम नहीं करेगा.उसके घर की महिलायें किसी के यहाँ चूल्हा चौका या खेतों में काम करनें 
नहीं जायेंगी.लड़कियाँ गोबर बिनने नहीं जायेगीं बल्कि स्कूल जायेगी.
         इसके साथ ही लालच की भावना का भी परित्याग करना पड़ेगा कि हमारा भले नुकसान
हो लेकिन किसी का गुलाम नहीं बनना है.स्वतंत्र कार्य का चुनाव करना है तो शायद दलितों में
एक विकासवादी सोंच को नई रोशनी मिलेगी ओर इस बदलाव से आने वाली पीढ़ी को नया सुझाव
स्वमेव मिलेगा और जो सामन्तवादी सोंच है उसमें कुठाराघात होगा.यह कविता जीवन में बदलाव 
के संकेत दे रहा है.
           

बदलो जीवन पथ को
बढ़ो तीव्र गति से
देखो नई दिशायें
राह पकड़ो बढ़ने की
दलित नहीं रहना है
बहू बेटियाँ
घर पर रहेंगीं
नहीं करेगी गुलामी
उन सामन्तवादी सोंच के यहाँ
रखो निज मान
बनों नई दिशा

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