रविवार, 15 मई 2016

ऐ हवा...कवि जयचन्द प्रजापति' कक्कू'

ऐ हवा
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ऐ हवा
जाना उस गली में
वहीं रहती है
मेरी प्रियतमा
कहना उसे
टूट गया है
खाता भी नहीं
लाचार है
मिलने की आस लिये
ताक रहा है
सूख गया है
गेरूआ वस्त्र पहने
तेरा नाम लेकर
जिन्दा पड़ा है
चला नहीं जाता
बह रहे हैं
आँखों से सावन
नींद नहीं आती
पड़ा है वैसे
जैसे छोड़ गई थी
हाल बताना
ऐ हवा
तेरा उपकार
भूलूँगा नहीं


जयचन्द प्रजापति कक्कू
इलाहाबाद

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